जब चमन गुलजार-ए-जन्नत के सवारे जाएंगे आशिक़-ए-सिब्ते नबी उस दम पुकारे जाएंगे
क्या ये तारे हैं फ़लक पर ऐ गुलामान-ए-अली इनसे ऊंचे मेरी आहों के शरारे जाएंगे
भेज दोज़ख़ या के जन्नत ऐ नुसैरी के ख़ुदा हम किसी आलम में हों तुमको पुकारे जाएंगे
कांपते हाथों से तुर्बत खोदकर शह ने कहा हमसे असग़र क़ब्र में क्यूंकर उतारे जाएंगे
चूम कर मुंह शाह ने बाली सकीना से कहा सब्र करना जब गौहर तेरे उतारे जाएंगे
गुल है फ़ौज-ए-शाम में अब्बास को पानी ना दो इनके तेवर कहते हैं दरिया उठा ले जाएंगे
ये न समझो सारी दौलत नज़र-ए-मौला पर झुके ये अभी असग़र को झूले से उठा ले जाएंगे
कुव्वत-ए-बातिल के आगे सर ये झुकने का नहीं दोहरे दोहरे तौक़ भी गर्दन में डाले जाएंगे
इज़्ज़त-ए-इस्लाम रख देंगे तह-ए-तख़्त-ए-यज़ीद तश्त में शब्बीर का सर बे-हया ले जाएंगे
रो के कहती थीं सकीना पानी लाएंगे ज़रूर जब चचा अब्बास दरिया के किनारे जाएंगे
लाश-ए-अकबर से लिपट कर रोके कहते थे हुसैन जब तलक बेटा ना बोलोगे पुकारे जाएंगे