दरमियां लाशों के मकतल में खड़ी है ज़ैनब
इस अंधेरे में किसे ढूंढ़ रही है ज़ैनब
सबकी नज़रें है चमकते हुए ख़ंजर की तरफ़
भाई का ख़ुश्क गला देख रही है ज़ैनब
हाथ उठाकर करूं किस तरह से लाशों को सलाम
हाथ रस्सी में बंधे हैं खड़ी है ज़ैनब
छोड़कर भाई को मकतल से हो रुकसत कैसे
लाशे से उट्ठी है फिर उठ के गिरी है ज़ैनब
शह पे चलते हुए ख़ंजर को भला क्या मज़लूम
किस तरह ख़ाक पे ग़श खाके गिरी है ज़ैनब
तेरे सर पर ये ना निकले निकलते दम तक
तेरे बालों में जो ये ख़ाक पड़ी है ज़ैनब
दिन की धूप आ गई और रात की ओस आ भी गई
सज रहा अब भी दरबार खड़ी है ज़ैनब
दीं बचाने के लिए घर से जो निकली थी नवेद
बच गया दीन मगर कैसे लुटी है ज़ैनब