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Saturday, October 23, 2021

darmiyan lasho ke

 

दरमियां लाशों के मकतल में खड़ी है ज़ैनब

इस अंधेरे में किसे ढूंढ़ रही है ज़ैनब


सबकी नज़रें है चमकते हुए ख़ंजर की तरफ़

भाई का ख़ुश्क गला देख रही है ज़ैनब



हाथ उठाकर करूं किस तरह से लाशों को सलाम

हाथ रस्सी में बंधे हैं खड़ी है ज़ैनब




छोड़कर भाई को मकतल से हो रुकसत कैसे

लाशे से उट्ठी है फिर उठ के गिरी है ज़ैनब


शह पे चलते हुए ख़ंजर को भला क्या मज़लूम

किस तरह ख़ाक पे ग़श खाके गिरी है ज़ैनब


तेरे सर पर ये ना निकले निकलते दम तक

तेरे बालों में जो ये ख़ाक पड़ी है ज़ैनब


दिन की धूप आ गई और रात की ओस आ भी गई

सज रहा अब भी दरबार खड़ी है ज़ैनब


दीं बचाने के लिए घर से जो निकली थी नवेद

बच गया दीन मगर कैसे लुटी है ज़ैनब