दरबार है यज़ीद है और सर हुसैन का
लिख्खा है एक छुटी हुई बेटी का वाक़ेया
वो भी असीरे ज़ुल्म थी अपनी फुफी के साथ
ले सकती थी न सांस के रस्सी में था गला
बोला यज़ीद बाली सकीना को देखकर
ऐ शिम्र क़ैद किसकी ये लड़की है महलक़ा
उसने कहा हुसैन की है पारा ए जिगर
इसको सकीना कहते थे सुल्ताने करबला
बोला यज़ीद कह दो हटें सामने से लोग
कुछ मुझको है हुसैन की बेटी से पूछना
हुकमे यज़ीद से जो हटी सामने से भीड़
आले रसूले पाक का आलम नज़र पड़ा
बारह असीर एक रसन में थे यूं बंधे
एक की कलाई एक का हांथ एक का गला
बोला यज़ीद नहस के ऐ दुख़तरे हुसैन
कुछ हमसे भी बताओ मुसीबत का माजरा
तुम एक मुंह पे एक गले पे हो क्यो रखे
है दोनो नन्हें हांथों की ख़िदमत जुदा जुदा
कहने लगी यज़ीद से क्या पूछता है तू
एक नन्हा हांथ मुंह पे है इस वास्ते रखा
हैं छोटे छोटे सिन की तरह बाल भी मेरे
फुफियों की तरह चेहरे का परदा न हो सका
बेपर्दा तेरे सामने है इतरते रसूल
जायज़ नही है सामना छोटा हो या बड़ा
उसको न पूछ दूसरा गरदन पे है जो हाथ
बेचैन कर रहा है मेरा दम घुटा हुआ
कहने लगा यज़ीद बताओ तो ये मुझे
रखती हो कितनी उल्फ़ते सुल्ताने करबला
कहने लगी दुखा हुआ दिल छेड़ता है क्यों
जिसको छुड़ाना था तुझे उसको छुड़ा लिया
हर शब को ढूंढा करती हूं मैं सीनाए पिदर
दसवीं से आज तक मुझे सोना नहीं मिला
उसने कहा न मानूंगा ये बात मैं कभी
तश्ते तिला में दो सरे शब्बीर को सदा
फ़र्क़े पिदर लगन से उठ आए तुम्हारे पास
कुर्ते में बढ़ के लो सरे सुल्ताने करबला
दिल पर ख़्याल ज़ुल्म का जब कर गया असर
मजबूर होके बाप को बेटी ने दी सदा
कहने लगी न कहती मैं हरगिज़ फ़ना के बाद
बाबा यज़ीद ले रहा है इम्तेहां मेरा
एजाज़ से फटे हुेए कुर्ते में आइए
बेटी का है भरे हुए मजमें से सामना
देखे यज़ीद क़ुदरते आले रसूल को
खुल जाए सब पे चाहता है किस क़दर ख़ुदा
थी पर्दे पर्दे में जो ये अरमानो आरज़ू
तश्ते तिला तक आके न ख़ाली गई सदा
ज़ाहिर हुई जो क़ल्बे सकीना की कैफ़ियत
ऊंचा हुआ लगन से सरे शाहे करबला
बेटी की सिम्त इधर तो रवां था सरे हुसैन
था उस तरफ़ सकीना का कुर्ता उठा हुआ
कुर्ते तक आए आप अजब एहतमाम से
आहिस्ता सर को ला रही थी ख़ल्क़ की हवा
बेटी के दिल का हो गया ताज़ा गुले मुराद
इक फूल था जो कुर्ते में आकर महक गया
मुद्दत के बाद बेटी को जब मिल गए हुसैन
मुंह अपना ख़ूं भरे हुए चेहरे पे रख दिया
गोदी में आप आए हैं मैं बात कर सकूं
बाबा रसन बंधा हुआ खुलवाइए गला
जब मैं पुकारती थी तड़पकर हुज़ूर को
बाबा तमाचे मारता था शिम्र बेहया
सदक़े गई ये नील हैं रुख़सार पर वही
बेटी को अपनी भूल गए शाहे करबला
ज़ाख़िर सितम यज़ीद का किस क़ल्ब से कहूं
तड़पा के दिल सकीना का फिर सर को ले लिया