header 2

Friday, October 8, 2021

ya mohammad aisi quwwat

 

या मोहम्मद ऐसी क़ुव्वत तेरे हांथ आई के बस

ख़ाना‌ ए काबा में पाया तूने वो भाई के बस


धीरे धीरे हो गया सारा अरब ज़ेरे नगीं

या रसूल अल्लाह हिजरत ऐसी रास आई के बस


था हरम मौजूद मौलूदे हरम कोई न था

खाए जाती थी ख़ुदा के घर को तनहाई के बस


जिसने रातों को इबादत से जगाया उम्र भर

हां शबे हिजरत उसी को ऐसी नींद आई के बस


हमसफर जिबरील थे लेकिन उन्हे रुकना पड़ा

ग़ैब के पर्दे से जैसे ही निदा आई के बस


उड़ते उड़ते हज़रते जिबरील के पर बच गए

ज़ुल्फ़ेक़ारे हैदरी कुछ ऐसी लहराई के बस


वो तो कहिए दामने मौला मेरे हांथ आ गया

वरना दो आलम में होती ऐसी रुसवाई के बस