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Monday, October 12, 2020

jab kat gaye



जब कट गये दरिया पे अलमदार के बाजू

शानों से जुदा हो गए जर्रार के बाज़ू

रेती पे गिरे शाह के ग़मख़्वार के बाज़ू

थर्राने लगे सय्यदे अबरार के बाज़ू

रंग उड़ गया तस्वीरे अलम हो गये शब्बीर

हाथों से जिगर थाम के ख़म हो गए शब्बीर


अकबर से कहा कर दो गिरेबां को दोपारा

हम सोग में हैं कत्ल हुआ शेर हमारा

आशिक मेरे बच्चों का ज़माने से सिधारा

फरमा के ये हज़रत ने अमामे को उतारा

आफत में फंसी पानी की मोहताज सकीना

बस हो गयी दुनिया में यतीम आज सकीना


फ़रमा के ये कहते हुए रोये शहे वाला

संभले कभी खुद और कभी अकबर ने संभाला

था सीना-ए-अक़दस में कलेजा तहो बाला

चिल्लाते थे है है मेरे आगोश का पाला

आगे कभी चलते कभी गिर पड़ते थे शब्बीर

घबरा के हर इक लाश पे गिर पड़ते थे शब्बीर




है है शहे दीं कह के जो रोए अली अकबर

सदमे से तड़पने लगे अब्बासे दिलावर

घबरा के भतीजे से कहा ऐ मेरे दिलबर

दिखाला दो किधर हैं मेरे आका मेरे सरवर

अकबर ने कहा ग़म शहे वाला को बड़े है

वह आप के कदमों की तरफ ग़श में पड़े हैं


सरका के क़दम जल्द ये अब्बास पुकारे

फेरो मेरे लाशे को मैं कुर्बान तुम्हारे

छाती में है दम मौत के आसार हैं सारे

किब्ले की तरफ चाहिये मुंह ऐ मेरे प्यारे

बेदस्त हैं इस वक्त ये एहसास करो हम पर

रख दो मेरा सर किब्ला ए आलम के कदम पर


गश में ये सुखन सुनके पुकारे शहे ज़ीशान

ये किस की सदा है मैं आवाज़ के कुर्बान

अकबर ने कहा कब से तड़पते हैं चचा जान

मिल लीजिये कि अब्बास कोई दम के है मेहमां

फिर हो न सका जब्त इमामे अजली से

लिपटे शहे दी लाशए अब्बास अली से


चिल्लाए बसद ग़म मेरे भाई  मेरे भाई

क्या दिल का है आलम मेरे भाई मेरे भाई

क्यों चश्म है पुरनम मेरे भाई मेरे भाई

उखड़ा है तेरा दम मेरे भाई मेरे भाई

सीने में अजल सांस ठहरने नहीं देती

हिचकी तुम्हें अब बात भी करने नहीं देती


ख़ुश्क़ रेज़ा जबां  से जो नहीं बात का यारा

कुछ नर्गिसी आँखों से करो हम को इशारा

पुतली भी फिरी जाती है मुंह ज़र्द है सारा

मालूम हुआ जल्द है अब कूच तुम्हारा

करवट ये नहीं भाई से मुंह मोड़ रहे हो

हम खूब समझते हैं कि दम तोड़ रहे हो





ये कहते थे हज़रत कि कयामत हुई तारी

अब्बास अलमदार गिरा है कई बारी

उनको जो दम आंखों में तो आंसू हुए जारी

तन रह गया और रूह सूए खुल्द सिधारी

चिल्ला के जो शह रोये तो घबराई सकीना

निकला था दम उनका कि निकल आई सकीना




ये दौड़ के कहने लगी फिज़्जा जिगर फिग़ार

जाती हो कहां तीर न मारे कोई खूंख़्वार

चिल्लाई बहन ड्योढ़ी से या सैय्यदे अबरार"

थमती नहीं अब हम से सकीना" जिगर उफ़ग़ार

या फेर के इस बेकसो बेयार को लाओ

या ड्यौढ़ी तलक लशाए अब्बास को लाओ






घबरा के सूए ख़ैमा लगे देखने सरवर

देखा के चली आती सर पीटती दुख़्तर

ज़ुल्फ़ें तो है बिखरी हुई टोपी नहीं सर पर

जो रोकता है कहती है घबरा के ये दुख़्तर

लोगों तुम्हें कुछ मेरे बहिश्ती की ख़बर है

बतला दो मुझे बहरे ख़ुदा नहर किधर है




सक़्के का मेरे नाम है अब्बास अलमदार

तस्वीरे अली की है सरापा वह ख़ुश अवतार

कांधे पे तो मश्क़ीज़ा है और हाथ में तलवार

प्यासी हूँ मगर अब मुझे पानी नहीं दरकार

फिर आने की क़समें उन्हे देने को चली हूं

में अपने चचा जान को लेने को चली हूं