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Sunday, October 4, 2020

ro ke kahti thi





रोके कहती थी ये मादर ऐ सकीना घर चलो

चैन आए मुझको क्योंकर ऐ सकीना घर चलो 


जब चली थी मैं मदीने से तो थी गोदी भरी

अब नहीं गोदी में असग़र ऐ सकीना घर चलो


मांग भी उजड़ी है मेरी गोद भी ख़ाली हुई

अब न क़ासिम हैं ना अकबर ऐ सकीना घर चलो


पर्दा बालों से किया था शाम के दरबार में

मिल चुकी है हम को चादर ऐ सकीना घर चलो


तुम कहा करती थीं अम्मा कब वतन जाएंगे हम

अब वतन जाती हूँ छुटकर ऐ सकीना घर चलो


वो अंधेरी क़ब्र और वो क़ैदख़ाना शाम का

नींद आए तुमको क्योंकर ऐ सकीना घर चलो


ये बता दो जान मेरी पूछे गर सुग़रा तुम्हे

क्या बताऊं उसको जाकर ऐ सकीना घर चलो


तुम अकेली हो यहां बाबा का सीना भी नही

छोड़कर जाऊं मैं किस पर ऐ सकीना घर चलो


बैन से बानो के ज़ामिन क़ैद ख़ाना हिल गया

जब कहा मादर ने रोकर ऐ सकीना घर चलो