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Tuesday, October 13, 2020

mili rehai to



 
मिली रिहाई तो आबिद यह काम कर के चले

सब आँसू क़ब्रे सकीना के नाम कर के चले 


ये अहले शाम से बोले अगर ना हो ज़हमत

दिया जला दिया करना अगर मिले फ़ुर्सत

बहन के वास्ते ये एहतमाम कर के चले

सब आँसू क़ब्रे सकीना के नाम कर के चले


दुआ जो करती थी रो रो के वो भी दिन आए

वो जिस के दिल में ये अरमान था वतन जाए

उसे हवाला-ए-ज़िंदाने शाम कर के चले

सब आँसू क़ब्रे सकीना के नाम कर के चले



सकीना शाम के ज़िंदा मे रह गई तन्हा

चले असीर रिहा होके सूए करबोबला

ये मारका भी तो आबिद तमाम करके चले

सब आँसू क़ब्रे सकीना के नाम कर के चले



वतन भी जाके ये रोएगी शाह के ग़म में

अब इनकी उम्र बसर होगी शह के मातम में

जो ज़ीस्त अपनी ७२ के नाम करके चले

सब आँसू क़ब्रे सकीना के नाम कर के चले



वो कैसे भूलेंगे जो लग गए जुदाई के दाग़

जलाए क़ब्र पे रो रो के आंसुओं के चराग़

दिलों के सब्र की ख़ातिर ये काम करके चले

सब आँसू क़ब्रे सकीना के नाम कर के चले



कोई हमारा मरा तो कहा हुसैन हुसैन 

अज़ा का फर्श बिछा तो कहा हुसैन हुसैन 

ये इंतेज़ाम भी चौथे इमाम कर के चले

सब आँसू क़ब्रे सकीना के नाम कर के चले


"ज़फ़र" सदा यही आती थी ऐ मेरे बाबा

सभी वतन गए मैं क़ैद में रही तन्हा

लहद पे अहले हरम जब सलाम कर के चले

सब आँसू क़ब्रे सकीना के नाम कर के चले