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Friday, October 16, 2020

hussain jab ke chale



हुसैन जबके चले बादे दो पहर रन को

कोई ना था के जो थामे रकाबे तौसन को

सकीना थाम रही थीं अबा के दामन को

हुसैन चुपके खड़े थे झुकाये गर्दन को


ना आसरा था कोई शाहे करबलाई को

फ़कत बहन ने किया था सवार भाई को


दरे खयाम पे अहले हरम बिलकते थे

ज़मी पे आबिदे बीमार सर पटखते थे

बहन जो रोती थी मुड़ मुड़ के शाह तकते थे

ज़बां यूं सूखी थी कुछ बात कर ना सकते थे


पुकारते थे हरम शाहे नामदार चले

हुसैन मरने चले और हमको मार चले


कोई तो कहती थी रो रो के या अली फरियाद

तुम्हारी बेटियां जंगल में होती है बर्बाद

कोई मलूल कोई नोहा गर कोई नाशाद

कहीं ज़मीन पे बाक़र था और कहीं सज्जाद


फलक पा ग़ुल था के रूहे बतूल रोती है

सकीना चार बरस की यतीम होती है


ये  फ़िक्र करके लगे रोने सय्यदे अबरार

तब आई कान में आवाज़े अहमदे मुख़तार

हुसैन तेरी ग़रीबी पे ये रसूल निसार

अगर चे चल नहीं सकता ये प्यास से रहवार


पियादा पा ता रफ़े क़त्ल गाह जाओ तुम

हमारी उम्मते आसी को बख़्शवाओ तुम


हुसैन ख़ूब सा रोए नबी का सुन के कलाम

कहा न कीजिए तशवीश या रसूले अनाम

तुम्हारी उम्मते आसी पे सदक़े हो ये ग़ुलाम

ये कहके घोड़े से कहने लगे बा अज़्म तमाम


ज़ियादा मुझसे तुझे अपनी जान प्यारी है

उठा क़दम कि मेरी आख़री सवारी है