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Tuesday, October 13, 2020

ashar

दोनो जहां में आई ये कैसी खुशी है आज

जाकर जिधर भी देखिए महफिल सजी है आज

आया है आज दहर में दुनिया का रहनुमा

आओ मनाएं जश्न कि आया वली है आज


तेरा करम है ऐ मेरे मौला मेरे अली

मेरी ये ज़िन्दगी तेरा है सदक़ा मेरे अली

मौला तेरी बुलंदियों पर नबियों को नाज़ है

होगा न कोई दूसरा जैसा तेरे अली


दिलो दिमाग़ पे इस क़दर छा गये अब्बास 

वफ़ा का नाम लिया था के आ गये अब्बास 

अली के लाल है जद्द इनके है अबूतालिब 

प्याम-ए-हक़ को विरासत मे पा गये अब्बास 

अली-ओ-हमज़ा-ओ-ज़फर भी थे अलंबरदार

फिर इनके बाद अलम बन कर आ गये अब्बास


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हर जंग में क़ानून है हथियार से लड़ना

ख़ंजर से कभी तीर से तलवार से लड़ना

आता है नहीं लोगों को अफ़्कार से लड़ना

समझाऊँगा दुनिया को मैं किरदार से लड़ना


दुश्मन से मारके का तरीक़ा बदल दिया

असग़र ने पल मे जंग का नक़्शा बदल दिया

क़ातिल को अपने तीर पे था फ़तह का गुमान

असग़र ने मुस्कुरा के नतीजा बदल दिया


गो जिस्म का क़द सुरा-ए-वन्नास से कम था

रुतबा ना मगर हज़रते इलियास से कम था

गो ज़ोरे तब्अ' जो आज प्यास से कम था

ताक़त में ना अकबर से ना अब्बास से कम था

असग़र ने लड़ाई के नये क़वानीन बनाए

जो सबसे बहादुर हो वो आख़ीर में जाए


काबा समझ लूँ कैसे हर एक संगे दर को मैं 

पहचानता हूँ आले मोहम्मद के घर को मैं 

मेरी निगाह में अली असग़र की जंग है

हथियार मानता नही तेग़ो सिपर को मैं