साथ शब्बीर के जब यावरो अंसार चले
शोर था कौसरो जन्नत के खरीदार चले
भेजी अल्लाह ने तत्हीर की चादर जिनको
सर खुले हाय ग़ज़ब वो सरे बाजार चले
मरहबा मरहबा ए कूव्वते बाज़ुए हुसैन
भूके प्यासे सिफ़ते हैदरे कर्रार चले
सुबह से असर तलक शह पे फ़िदा होने को
कभी नादान बढ़े और कभी होशियार चले
देके रुखसत अली अकबर को पुकारे सरवर
आप मरने को चले और हमें मार चले
बेड़ियाँ पांव में और तौके ग़रा गर्दन में
रेगज़ारों पा भला किस तरह बीमार चले
जब जुबां असगरे बेशीर ने होठों पे रखी
लश्करे जुल्म पुकारा के हम अब हार चले
फ़ख़्र से कहने लगा हुर का पिसर ऐ बाबा
मैं भी उस सिम्त चला हूँ जहाँ ग़मख़्वार चले
तश्नगी करने लगी उनकी शुजात को सलाम
मौजे दरिया से जो प्यासे ही अलमदार चले