लाश अकबर की जो मकतल से उठा लाये हुसैन
नौजवां को सफे अव्वल से उठा लाये हुसैन
चाँद को शाम के बादल से उठा लाये हुसैन
जांबलब शेर को जंगल से उठा लाये हुसैन
दी सदा लाशे पिसार आन के लेजा बानो
छिद गया बरछी से अकबर का कलेजा बानो
लाश अकबर की.
देख ले आखरी दीदार पिसार मरता है
सामने आँखों के ये नूरे नज़र मरता है
अब कोई दम में मेरे रश्के क़मर मरता है
मुँह से बहार है ज़बां तश्ना जिगर मरता है
दम है छाती में रुका ज़ख्मों से खूं जारी है
शेहरबानो तेरे घर लुटने की तैयारी है
लाश अकबर की...
पहुंची ख़ैमे में जो हज़रात की ये पुरदर्द सदा
मुज़्तरिब हो गये नामूसे रसूले दो सारा
कहा चिल्ला के सकीना ने के है है भैय्या
फिज्ज़ा दौड़ी सुए दर फैक के सर पर से रिदा
पीटती जैनबे मुज़्तर निकल आयीं बहार
बानो घबरा के खुले सर निकल आयी बहार
शाह के काँधे पे देखा अली अकबर को निढाल
हाथ फैला के ये चिल्लाई है है मेरे लाल
क्या गज़ब हो गया ए बादशाहे नेक खिसाल
रास आया न मेरे लाल को अट्ठारवा साल
टुकड़े तेगों से बदन होगया सारा है है
कौन था जिसने मेरे शेर को मारा है है
रोके बनो से ये फरमाने लगे सरवरे दीं
सर न पीटो अभी जिंदा है मेरा माह जबीं
सांस आती है पर हर दम है दमे बाज़ पसीं
कुछ उनका भी है और हम भी हैं मरने के करीं
सब छूटे अब न रहा कोई हमारा बानो
इस जवां बेटे के गम ने हमें मारा बानो
लाश अकबर की.