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Friday, October 23, 2020

kya motbar sirate shahe

 

क्या मोतबर सिराते शहे करबला मिली

दुनिया की खाक छान के ख़ाके शिफा मिली 


बाबे उलूम से मुझे फ़िक्रे रसा मिली

मुफलिस जो था, तो दौलते बेइंतेहा मिली


उस जिन्दगी के बाग़ तक आई नहीं ख़िजां

जिसको विलाए आल की आबो हवा मिली


देखे कोई इफ़ादियते मातमे हुसैन

इनसानियत के दर्द को कितनी दवा मिली


चश्मे करम से देखा जो मौला ने "हुर" का दिल

दर पर्दा एक क़ुसूर में रूहे विला मिली


परवाज़े  जिन्दगी हुई "फितरुस" को फिर नसीब

दामाने फैज़े शाह से ऐसी हवा मिली


आशूर की सहर से अभी तक जहान में

अकबर  तेरी अज़ां को भुसलसल सदा मिली


असग़र तेरी अदाए शहादत पे हक़  निसार

बनकर हयात तेरे गले से कज़ा मिली


'जैनब हुसैनियत की अलमदार बन गई

जब कर्बला के बाद नई करबला मिली


मुश्किलकुशाइयों को पये इतरते अली

अब्बास ! हर क़दम पे तुम्हारी वफा मिली


लब पर दुमाएँ, सजदे में सर और गले पे तेग़

ऐ बन्दगी । तुझे कहीं ऐसी अदा मिली


'क़ासिम' के दिल को देखा फरिश्तों ने क़ब्र में

उसके हर एक ज़र्रे में एक  करबला मिली