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Friday, October 16, 2020

ghar se jab bahre safar

घर से जब बहरे सफर सय्यदे-आलम निकले

सर झुकाये हुए बदीदाओ पुरनम निकले

ख़ेशो फ़रज़न्द कमर बांध के बाहम निकले

रोके फ़रमाया के इस शहर से अब हम निकले


रात से गिरया-ए-ज़हरा की सदा आती है

देखें किस्मत हमें किस दश्त में ले जाती है


रुख किया शह ने सुए क़ब्र-ए-शहंशाहे अनाम

बहर-ए-तस्लीम झुके मुत्तसिले बादे सलाम

इंज़्न पाकर कर जो गए क़ब्र के नज़दीक इमाम

अर्ज़ की आया है आज आखरी रुखसत को ग़ुलाम



ये मकां हम से अब ए शाहे ज़मन छुटता है

आज हज़रत के नवासे से वतन छुटता है।


चैन से सब है घरों में मुझे मिलता नहीं चैन

सख्त आफत में है अब आपका ये नूरे ऐन

टुकड़े दिल होता है जब रोके हरम करते हैं बैन

नन्हे बच्चों को भला लेके किधर जाये हुसैन


शहर मैं चैन न जंगल में अमां मिलती है

देखिये क़ब्र मुसाफिर को कहाँ मिलती है


अब मेरे सर के लिए तेज़ हुआ है खंजर

अहले कीं शर पे कमर बंधे हैं या कैरे बशर

आपने दी थी इसी रोज़ की अम्मा को खबर

वालिदा रोई थी दो रोज़ तलक पीट के सर


इस नवासे को मगर भूल न जाना हज़रत

जिब्ह के वक्त मदद करने को आना हज़रत


ये वो दिन हैं के परिंदे भी नहीं छोड़ते घर

मुझको दर पेश है इन रोज़ों में आफत का सफर

है कहीं क़त्ल का समां कहीं लुट जाने का डर

साथ बच्चों का है ए बादशाह जिन्नो बशर



तंग जीने से हूँ पास अपने बुला लो नाना

अपनी तुर्बत में नवासे को सुला लो नाना


ये बयां कर के जो तावीज़ से लिपटे सर्वर

यूँ हिली क़ब्र के थर्राऊ ज़रीए अनवर

आयी तुर्बत से आवाज़े हबीबे दावर

तेरी गुरबत के मैं सदके मेरे मज़लूम पिसर


कोई समझा न मेरी गोद का पाला तुझको

हाय आदा ने मदीने से निकला तुझको


ए मेरे गेसुओं वाले मेरे साबिर शब्बीर

मेरे बैकस मेरे मज़लूम मुसाफिर शब्बीर

ना रहा कोई तेरा यारों नासिर शब्बीर

हाय ए गोर ग़रीबां के मुजाबिर शब्बीर


तू जहाँ जायेगा प्यारे वहीं चलता हूँ मैं

खाक उड़ाता हुआ तुर्बत से निकलता हूँ मैं


कई दिन से तेरी मादर को नहीं क़ब्र में चैन

आयी थी शब को मेरे पास ये करती हुई बैन

घर मेरा लुटता है फर्याद रसूलुस सक़लैन

सुबह को अपना वतन छोड़ के जाता है हुसैन


कहने आयी हूँ के मुंह कहां से मोडूंगी मैं

अपने बच्चे को अकेला तो न छोडूंगी मैं


सुनके ये शह ने किया आखरी रुखसत का सलाम

निकले रोते हुए जब रोज़ए अनवर से इमाम

शह से उस दम ये किया रोके ये ज़ैनब ने कलाम

क़ब्र पर मां की मुझे ले चलो या शाहे अनाम


लोग हमराह हैं महमिल है क्यों कर रोऊँ

मां की तुर्बत से फिर एक बार लिपट कर रोऊँ



माँ की तुर्बत पे गए शाह बा चश्म खून बार

उतरी महमिल से बसद आहो फुगां जैनबे ज़ार

दौड़ कर क़ब्र से लिपटे जो इमामे अबरार

हाथ ज़हरा के लहद से निकल आये एक बार


आयी आवाज़ न रो दिल को कलक होता है

कब्र हिलती है कलेजा मेरा शक होता है


हाँ बुलाओ मेरा अब्बास दिलावर है किधर

वो फ़िदा है मेरे बच्चे पे मैं सदके उस पर

शिकमे गैर से है पर वो मेरा ही है पिसर

ये सदा सुन के बारादर को पुकारे सरवर


अभी रहवार को आगे न बढ़ाओ भाई

याद फरमाती हैं अम्मा इधर आओ भाई


आके अब्बास ने सर रख दिया पाईने मज़ार

आयी जेहरा की सादा में तेरी ग़ुरबत के निसार

अपने प्यारे के बराबर में तुझे करती हूँ प्यार

ध्यान भाई की हिफाजत का रहे ऐ दिलदार


कोई ग़ुरबत में उसे मर न डाले बेटा

मेरा शब्बीर है अब तेरे हवाले बेटा