header 2

Sunday, October 25, 2020

musafirane musibat

 

मुसाफिराने मुसीबत वतन में आते हैं

सफर से आते हैं सौग़ाते दर्द लाते हैं

बजाए अश्क़ वो आंखों से खूं बहाते हैं

उठा के हाथ‌ मदीने को ये सुनाते हैं

लुटा के आये है ज़हरा के हम घराने को

न कर कुबूल तू हम बेकसों के आने को


मदीना हम तेरे वाली को आये हैं खो कर

मदीना गर्दने शब्बीर पर चला ख़ंजर

मदीना कूफे में सर नंगे हम फिरे दर दर

मदीना दागे रसन हमारे शानों पर

हम आए ज़िन्दा प ज़हरा का नूरे ऐन नहीं

मदीना अकबरो कासिम नहीं हुसैन नहीं


मदीना याद तो होगा तुझे वो जाहो हशम

गये थे कितने तजम्मुल से करबला को हम

वो खे़मा और मेरा पर्दा वो फौज और वो अलम

और अब स्याह कफ़न और हुसैन का मातम

पसन्द आमदे जुर्रियते रसूल न कर

मदीना ऐसे हक़ीरों को तू कुबूल न कर



हिली ज़मीन मदीने की उस घड़ी पैहम

किया बशीर को सज्जाद ने तलब उस दम

गले में  शाले अज़ा डाल दी ब-दीदाओ नम

और एक हांथ मे रोकर दिया सियाह अलम

कहा के जा नही गो अपने मुंह दिखाने की

मगर वतन में खबर कर दो मेरे आने की


चला बशीर ये देता हुआ खबर हर जा

मगर मोहल्लाए हाशिम में देखता है क्या

कि एक मरीज़ा सरे राह है खड़ी तन्हा

जो नाम पूछा तो रो रो के बोली वो सुग़रा

बशीर कहने लगा क्यू तू शोरो शैन में है

कहा ये हाल मेरा फुरक़ते हुसैन में है


खड़ी हूं मुन्तज़िर अकबर की देखूं कब आये

मैं घर से निकली हूँ शायद कि क़ासिद आ जाये

ख़ुदा कहीं मेरे बिछड़ों को ख़ैर से लाये

के ये मरीजा लबे गोर है शिफा पाये

कोई पिदर की खबर लाये पांव पढ़ती हूं

जुदा मसीह से हूँ एड़िया रगड़ती हूं.


बशीर समझा ये बिन्ते हुसैन सुगरा है

ख़मोश रह गया सुग़रा के मुंह पे कुछ न कहा

पुकारी फातेमा गर्दन में देख शाले अज़ा

तू भाई लाया है किसकी सुनानी मुझ को सुना

वह बोला कासिदे बीमारे कर्बला हूं मैं

सुनानी क़ब्रे पयंबर पे ले चला हूं मैं



वो रोके बोली कि भाई ये क्या सुनाता है

वह कौन है जिसे बीमार तू बताता है.

सुनानी किसकी है मुझको ये हौल आता है

के मुस्तफा की लहद से तू कहने जाता है

अमामा फेंक के उसने कहा दुहाई है

तेरे हुसैन की सुगरा सुनानी आई है


ज़मीं पे हाय पिदर कह के गिर पड़ी सुग़रा

ख़बर ये फैली तो मातम हर एक घर में हुआ

तमाम औरते निकलीं घरों से करती बुका

नबी की क़ब्र पे जाकर बशीर ने ये कहा

सफर से लुट के इधर भूखी प्यासियां आयीं

उठो रसूल तुम्हारी नवासियां आयीं


बशीर कहता है अल्लाह रौज़ा कांप गया

लहद से नाला हुआ वा हुसैन का पैदा

इधर ज़मी पे तड़पती थी फातेमा सुग़रा

ज़नाने हाशिमी ने इक वहां हुजूम किया

हिला के शाना कहा शाहे मशराक़ैन आए

उठो हुसैन की आशिक़‌ उठो हुसैन आए


वो आंखे खोल के बोली कि मर गए बाबा

इसी में क़ाफिलाए करबोबला भी आ पहुंचा

बहन हुसैन की सर नंगे देती थी ये सदा

हुसैन जब से मुए मैने सर नहीं ढ़ापां

न मुर्दा‌ और न ताबूत लेके आई हूं

मदीना वालों मैं भाई को खोके आई हूं


मदीना वालों कहो उस बहन की क्या तक़दीर

जो देखे अपने बरादर के हल्क़ पर शमशीर

अज़ीज़ों इसकी सज़ा क्या है कुछ करो तक़रीर

लहू मे ग़र्क जो देखे हुसैन की तस्वीर

बताओ कहते है क्या उस अम्मा जाई को

जो अरबईन तलक दे कफ़न न भाई को



मेरे हुज़ूर था हल्क़े हुसैन पर ख़ंजर

शहीद हो गया हमशक्ले मुस्तफा अकबर

कफ़न न दे सकी भाई को मैं हूं वो‌ ख़्वाहर

ख़ुदा गवाह के सर पर मेरे न थी चादर

ज़मीने गर्म पे भाई की लाश तन्हा थी

हुसैन जानते थे मैं असीरे आदा‌ थी


ये कह के आगे बढ़ी ज़ैनबे ख़स्ता सिफात

तो देखा दूर से सुग़रा को इस तरह हैहात

दिए हुए हैं कई बीबीयां बग़ल में हाथ

गयीं न सामने सुग़रा के ज़ैनबे नाशाद

कभी तो क़ाफिले के पीछे आके छिपतीं थीं

कभी रसूल के रौज़े में जाके छिपतीं थीं


नबी की क़ब्र पे सुग़रा ने पाया ज़ैनब को

गले लिपट के पुकारी पिदर का पुरसा दो

वो बोलीं सारे अज़ीज़ों का मुझ से पुरसा लो

अज़ीज़ हो गए फिदिया सभी शहे ख़ुशख़ू

तू जानती है के बाबा फ़क़त मुआ सुग़रा

शहीद तीर से असग़र तलक हुआ सुग़रा


अभी तो कहती थी ज़ैनब ब नालाए जां काह

कि एक शीशे को ले आयीं उम्मे सलमा आह

भरा हुआ था लहू से वो शीशा सब वल्लाह

हरम ने मु़ह पे मला वो लहू बहाले तबाह

फ़ुग़ांओ आह के नारे बलन्द होने लगे

बिठा के बीच में सुग़रा को सब वो रोने लगे