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Tuesday, October 27, 2020

jab khaimo me rukhsat

 

जब ख़ैमें में रुख़सत को शहे बहरोबर आए

चिल्लाई सकीना मेरे बेकस पिदर आए

हज़रत को जो नामूसे पयंबर नज़र आए

रोकर कहा हम क़ब्र में असग़र को धर आए


लो बीबियों शब्बीर जहां से सफ़री है

अब फ़ातेमा का लाल चिराग़े सहरी है



तन्हा हुए किस तरह न हम मरने को जाएं

क़ासिम हैं कि अम्मू के एवज़ ख़ू में नहाएं

अब्बास हैं जो नहर पे हांथ अपने कटाएं

अकबर हैं जो बाबा के एवज़ बर्छियां खाएं


यावर कोई जुज़ बेकसी व यास नहीं है

असग़र भी मुए अब तो कोई पास नहीं है


तक़दीर में जो दाग़ उठाने थे उठाए

इन आंखो से फरज़न्दों के लाशे नज़र आए

अकबर सा पिसर मर गया हम मरने न पाए

ख़ालिक़ मुझे इस क़ाफिले से जल्द मिलाए


किस‌ से कहूं जो हिज्रे अज़ीज़ा का क़लक़ है

दो टुकड़े हैं सीने में कलेजा मेरा शक़  है



तुम सबको किया ख़ालिक़े अकबर के हवाले

ज़हरा के हवाले किया हैदर के हवाले

सब घर है मेरा आबिदे मुज़तर के हवाले

है मेरी सकीना मेरी ख़वाहर के हवाले


फ़ुरक़त में मेरे नालाओ फ़रियाद करेगी

बहलाइयो जिस दम वो मुझे याद करेगी


असग़र को लिए गोद में फिरती थी वो दिन भर

बहलाएगी दिल किस से के मारे गए असग़र

अब और यतीमी की बला आती है सर पर

ग़म है के ये किस तरह जियेगा मेरी दुख़तर


कौन उसके भला नाज़ उठाएगा मेरे बाद

सीने पे उसे कौन सुलाएगा मेरे बाद


अफ़सोस मेरी प्यारी ये अब होएगी बे दाद

दुर के लिए मारेंगे तमाचे सितम इजाद

चिल्लाएगी ले लेके मेरा नाम वो नाशाद

मर कर भी ग़मो रंज से हम होंगे न हम अज़ाद


हाय हाथ गला बांधेगा जब शिम्र रसन में

लाशा मेरा सदमे से तड़प जाएगा रन में



कह के सुख़न रोने लगे सय्यदे अकरम

नामूसे मोहम्मद में बपा हो गया मातम

सर पीट के ज़ैनब ने कहा ऐ शहे आलम

किस से सुख़ने यास ये फ़रमाते हैं इस दम


कुछ मेरी भी है फिक्र जो सर देते हो भाई

है है मुझे मरने‌ की ख़बर देते हो भाई


जाते हो तो हमराह बहन को लिए जाओ

मैं तीरे सितम खाऊंगी तुम बरछियां खाओ

जब ग़श में‌ सरे पाक को हिरने पे झुकाओ

मैं थाम लूं ता ख़ाक पे तुम गिरने न पाओ


तन्हा तुम्हे शमशीरो तबर खाने न दूंगी

मर जाऊंगी पर आपको मैं जाने न दूंगी


बाबा नहीं अम्मा नहीं बेटे भी नहीं पास

परदेस में है कौन बजुज़ बेकसो यास

इस ख़वाहरे ग़मग़ीं को फक़त आप की है आस

बाद आप का करने का नहीं कोई मेरा पास


हर शहर में सर नंगे मैं दिल ख़स्ता फिरूंगी

सदक़े गयी दर दर मैं रसन बस्ता फिरूंगी


रोने लगे ज़ैनब से ये सुन के शहे अबरार

छाती से लगाया उसे ब दीदाओ ख़ू बार

फ़रमाया के दे सब्र तुझे इज़दे ग़फ़्फार

 वल्लाह नहीं भाई है इस अम्र में नाचार


किस तरह न मरने का इरादा करे ज़ैनब

है मरज़िए ख़ालिक तो यही क्या करे ज़ैनब


जाने दो बहन ख़ालिक़े अकबर की क़सम है

रोको न हमें तुमको पयंबर की क़सम है

ज़हरा की तुम्हे रूहे मुतह्हर की क़सम है

बस सब्र करो तुमको मेरे सर की क़सम है


तनहाई से दिल सीने में घबराता है भय्या

अब ठहरूं तो वादे में ख़लल आता है भय्या


ये सुन के गिरीं ज़ैनबे दिलगीर ज़मीं पर

चिल्लाई के दुनिया से चले हाए बरादर

ये शह ने कहा देख के बानों को खुले सर

साहब कहो क्या हाल है क्यो फेंक दी चादर


लब पर कभी नाला है कभी सीना ज़नी है

हम तो अभी जीते है ये क्या शक्ल बनी है


रोकर कहा बानो‌ ने के या सिब्ते पयंबर

कुछ होश नहीं जब से मुए हैं अली अकबर

किस तरह मैं छाती को न पींटूं‌ मेरे सरवर

अकबर ही को रोती थी के मारे गए असग़र


जीने‌ की नहीं दिल पे बड़ा रंजो तअब है

आक़ा ने भी लौंडी को जो छोड़ा तो ग़ज़ब है


शह ने‌ कहा बनो यही क़िसमत में लिखा है

तक़दीर से कुछ ज़ोर नहीं सब्र की जा है

आया है जो दुनिया में वो एक रोज़ फ़ना है

घबराओ न हर दुख में मददगार ख़ुदा है


दो बेटे फ़िदा कर चुकी हो राहे ख़ुदा मे

शौहर को भी‌ क़ुरबान करो राहे ख़ुदा में


पैग़ाम रंडापे का सुना शाह से जिस दम

यूं रोई के बेहोश हुई बानुए पुर ग़म

आबिद के सरहाने गए रोते शहे आलम

बाज़ू को हिलाकर कहा बा दीदाओ पुरनम


क्या ग़श मे हो रुख़सत को पिदर आया है बेटा

उट्ठो के वसीयत को पिदर आया है बेटा


बाबा की सदा सुन के उसे होश जो आया

उट्ठा न गया सर क़दमे शह पे झुकाया

शह बैठ गए और उसे आहिस्ता उठाया

मुह देख के आबिद ने ये हज़रत को सुनाया


रौशन हुई आंखे शहे वाला नज़र आए

बस अब हुई सेहत के मसीहा नज़र आए


शह ने कहा दे तुझ को शिफा ईज़दे ग़फ़ार

जाता है पिदर मरने को ऐ आबिदे बीमार

ख़ैमे के जलाने को अब आएंगे जफ़ाकार

रहना हरमे पाक से बलवे में ख़बरदार


इस घर के बस अब मालिको मुख़तार तुम्ही हो

बे वारिसी रान्डो के मददगार तुम्ही हो