सलाम ख़ाक नशीनों पे सोगवारों का
ग़रीब देते हैं पुरसा तुम्हारे प्यारों का
सलाम उन पे जिन्हें शर्म खाए जाती है
खुले पे असीरी की ख़ाक आती है
सलाम उस पे जो रहमत कशे सलासिल है
मुसीबतों में इमामत की पहली मंज़िल है
सलाम भेजते हैं अपनी शाहज़ादी पर
कि जिसको सौंप गए मरते वक़त घर सरवर
मुसाफ़िरत ने जिसे बेकसी ये दिखलाई
निसार कर दिए बच्चे न बच सका भाई
असीर होके जिसे शामियों के नर्ग़े में
हुसैनियत है सिखाना अली के लहजे में
सकीना बीबी तुम्हारे ग़ुलाम हाज़िर हैं
बुझे जो प्यास तो अश्क़ों के जाम हाज़िर हैं
ये सिन ये हश्र ये सदमें नए नए बीबी
कहां पे बैठी हो ख़ैमे तो जल गए बीबी
पहाड़ रात बड़ी देर है सवेरे में
कहां हो शामे ग़रीबां के घुप अंधेरे में
ज़माने गर्म यतीमी की सख़्तियां बीबी
वो सीना जिसपे कि सोती थी अब कहां बीबी
जनाबे मादरे बेशीर को भी सबको सलाम
अजीब वक़्त है क्या दें तसल्लियों का पयाम
अभी कलेजे में एक आग सी लगी होगी
अभी तो गोद की गर्मी न कम हुई होगी
नहीं अंधेरे में कुछ सूझता किधर ढूंढूं
तुम्हारा चांद कहां छिप गया किधर ढूंढूं
न इस तरह कोई खेती हरी भरी उजड़ी
तुम्हारा मांग भी उजड़ा है गोद भी उजड़ी
नहीं लयींनों में इंसा कोई ख़ुदा हाफिज़
दरिन्दे और ये बे वारिसी ख़ुदा हाफिज़
शरीक़े हक़ दूरूदो सलामे पैग़म्बर
सलाम सय्यदे लौलाक के लुटे घर पर
सलाम मोहसिने इस्लाम ख़स्तातन लाशों
सलाम तुम पे शहीदों के बे कफ़न लाशों
बचे तो अगले बरस हम हैं और ये ग़म फिर है
जो चल बसे तो ये अपना सलामे आख़िर है