header 2

Sunday, October 25, 2020

salam khak nasheeno pe

 

सलाम ख़ाक नशीनों पे सोगवारों का

ग़रीब देते हैं पुरसा तुम्हारे प्यारों का 


सलाम उन पे जिन्हें शर्म खाए जाती है

खुले पे असीरी की ख़ाक आती है


सलाम उस पे जो रहमत कशे सलासिल है

मुसीबतों में इमामत की पहली मंज़िल है


सलाम भेजते हैं अपनी शाहज़ादी पर

कि जिसको सौंप गए मरते वक़त घर सरवर


मुसाफ़िरत ने जिसे बेकसी ये दिखलाई

निसार कर दिए बच्चे न बच सका भाई


असीर होके जिसे शामियों के नर्ग़े में

हुसैनियत है सिखाना अली के लहजे में


सकीना बीबी तुम्हारे ग़ुलाम हाज़िर हैं

बुझे जो प्यास तो अश्क़ों के जाम हाज़िर हैं


ये सिन ये हश्र ये सदमें नए नए बीबी

कहां पे बैठी हो ख़ैमे तो जल गए बीबी


पहाड़ रात बड़ी देर है सवेरे में

कहां हो शामे ग़रीबां के घुप अंधेरे में


ज़माने गर्म यतीमी की सख़्तियां बीबी

वो सीना जिसपे कि सोती थी अब कहां बीबी


जनाबे मादरे बेशीर को भी सबको सलाम

अजीब वक़्त है क्या दें तसल्लियों का पयाम


अभी कलेजे में एक आग सी लगी होगी

अभी तो गोद की गर्मी न कम हुई होगी


नहीं अंधेरे में कुछ सूझता किधर ढूंढूं

तुम्हारा चांद कहां छिप गया किधर ढूंढूं


न इस तरह कोई खेती हरी भरी उजड़ी

तुम्हारा मांग भी उजड़ा है गोद भी उजड़ी


नहीं लयींनों में इंसा कोई ख़ुदा हाफिज़

दरिन्दे और ये बे वारिसी ख़ुदा हाफिज़


शरीक़े हक़ दूरूदो सलामे पैग़म्बर

सलाम सय्यदे लौलाक के लुटे घर पर


सलाम मोहसिने इस्लाम ख़स्तातन लाशों

सलाम तुम पे शहीदों के बे कफ़न लाशों


बचे तो अगले बरस हम हैं और ये ग़म फिर है

जो चल बसे तो ये अपना सलामे आख़िर है