🤲 ANJUMAN-E-ZULFEQARE HAIDERI-MAHOLI
🕊️ आशूर की शब लैला ने कहा ऐ रात ज़रा आहिस्ता गुज़र 🕊️
दीदार तो कर लूं अकबर का ऐ रात ज़रा आहिस्ता गुज़र
हर मां का ये अरमां होता है बेटे को बना ले वो दूल्हा
अकबर को बना लूं मैं दूल्हा ऐ रात ज़रा आहिस्ता गुज़र
मैं ब्याह रचाऊं अकबर का अरमान ये पूरा कब होगा
घुटता है गला अरमानों का ऐ रात ज़रा आहिस्ता गुज़र
सुग़रा ने कहा था भइया को हाथों से पिन्हाऊंगी जोड़ा
आ जाए मदीने से सुग़रा ऐ रात ज़रा आहिस्ता गुज़र
मैं चूम तो लूं उस सीने को जिस सीने पर बर्छी होगी
अश्क़ो का बहा लूं मैं दरिया ऐ रात ज़रा आहिस्ता गुज़र
है आख़री लम्हा सांसों का जाता हू मैं दुनिया से बाबा
सुनकर ये जिगर फट जाएगा ऐ रात ज़रा आहिस्ता गुज़र
शब्बीर को दश्ते ग़ुरबत में कोई न मदद को आएगा
लाना है उन्हे तन्हा लाशा ऐ रात ज़रा आहिस्ता गुज़र
ज़ानू पे लिटाकर बेटे को कल बाप निकालेगा बर्छी
रह जाएगा बर्छी का टुकड़ा ऐ रात ज़रा आहिस्ता गुज़र
अट्ठारह बरस पाला था जिसे वो चांद निहा हो जाएगा
फिर अब्रे अलम छा जाएगा ऐ रात ज़रा आहिस्ता गुज़र
आशूर की शब ये नौहा था लैला के लबों पर ऐ आलम
कल मेरा चमन लुट जाएगा ऐ रात ज़रा आहिस्ता गुज़र