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Wednesday, May 25, 2022

ज़ैनब को गाज़ी याद आया

 


हाय बाज़ारे शाम जाकर ज़ैनब को ग़ाज़ी याद आया

ज़ैनब को ग़ाज़ी याद आया-3


आंखों से ख़ून जारी सर पे रिदा नहीं थी

ज़ख़्मी हरम के दिल थे कोई दवा नहीं था

जब दुर्रे लगे बदन पर ज़ैनब को ग़ाज़ी याद आया


सादात पा बरहना कांटों भरे थे रस्ते

रोते थे जब ये क़ैदी बे दर्द दिल थे हंसते

जब देखी सिना पे चादर ज़ैनब को ग़ाज़ी याद आया


हमशीर रोई उस पर तक़दीर रोई उस पर

बीमार जब भी रोया ज़ंजीर रोई उस पर

जब गलियों में बरसे पथ्थर ज़ैनब को ग़ाज़ी याद आया


 जो मलिकाए हया थी रहों में बे रिदा थी

ये सोंच कर ही ज़ैनब बस महवे मर्सिया थी

हाय शीरी के घर में जाकर ज़ैनब को गाज़ी याद आया


इससे बड़ी क़यामत क्या और होगी लोगों

आबिद ने अपने सर को क्यो न उठाया सोंचो

वो कहता था बस ये रोकर ज़ैनब को गाज़ी याद आया


अब्बास की बहन पर एक ऐसा वक़्त आया

दरबार में सितम के शिम्रे लयीं पुकारा

है कौन शह की ख़्वाहारा ज़ैनब को गाज़ी याद आया


निकली थी जब वो घर से मंज़र वो याद आया

नज़रें झुकाओ लोगों अब्बास ने कहा था

अब शाम में खुले सर ज़ैनब को गाज़ी याद आया


अट्ठारह भाईयों की हमशीर और खुले सर

ऐ लोगों तरस खाओ ज़ैनब को दे दो चादर

फिज़्जा जो बोली रोकर ज़ैनब को गाज़ी याद आया 


दरबार में गई थी एक रोज़ फ़ातेमा भी

लेकिन रिदा थी सर पर बेटों से थी तसल्ली

याद आया उसे ये मंजर ज़ैनब को गाज़ी याद आया


 गुज़री जो बीबियों पर क्या शादमां सुनाए

मज़हर मेरा कलेजा सदमों से फ़ट न जाए

बस रोको क़लम ये कहकर ज़ैनब को गाज़ी याद आया