घर से जाने लगे शब्बीर तो सुग़रा ने कहा
ले चलो मुझ को भी बीमार तुम्हे देगी दुआ
हो जाना ख़फा राह में जो रोएगी सुग़रा
यां नींद कब आती है जो वां सोएगी सुग़रा
बाबा बाबा तनहाई सज़ा है मुझे ऐसी न सज़ा दो
मैं ये नहीं कहती के अमारी में बिठा दो
बाबा मुझे फिज़्ज़ा की सवारी में बिठा दो
मैं ये नहीं कहती के अमारी में बिठा दो
सब बैठे सवारी पे मैं पैदल ही चलूंगी
वादा है किसी को कोई तकलीफ न दूंगी
बाबा बाबा अम्मा से मैं हरगिज़ न कहूंगी के दवा दो
मैं ये नहीं कहती के अमारी में बिठा दो
पलकों से मैं साया अली असग़र का करूंगी
अम्मा की सवारी से बहुत दूर रहूंगी
बाबा बाबा हां कहके मेरी ज़ीस्त के कुछ रोज़ बढ़ा दो
मैं ये नहीं कहती के अमारी में बिठा दो
मैं पानी पिलाऊंगी सवारी को तुम्हारी
बहलाऊंगी रस्ते में सकीना को तुम्हारी
बाबा बाबा जो काम कनीज़ों के है सब मुझ को बता दो
मैं ये नहीं कहती के अमारी में बिठा दो
सब नज़रें चुराते हैं कोई दम नहीं भरता
सच है कोई मुर्दे से मोहब्बत नहीं करता
बाबा बाबा तौकीर मेरी ये है कि मरने की दुआ दो
मैं ये नहीं कहती के अमारी में बिठा दो
क्या गुज़रेगी जब घर से चले जाएंगे अकबर
कैसे मुझे हर बात में याद आएंगे अकबर
बाबा बाबा कब आएंगे लेने मुझे भइया ये बता दो
मैं ये नहीं कहती के अमारी में बिठा दो
हां अपनी मोहब्बत का मैं इज़हार तो कर लूं
ठहरो अली असगर को ज़रा प्यार तो कर लूं
बाबा बाबा नाक़े से झलक नन्हे मुसाफिर की दिखा दो
मैं ये नहीं कहती के अमारी में बिठा दो
रेहान वो बीमार ये थक हार के बोली
ऐ सरवरो ज़ीशान तमन्ना है ये मेरी
बाबा बाबा जाते हो तो तुरबत मेरी तुम ख़ुद ही बना दो
मैं ये नहीं कहती के अमारी में बिठा दो