राहे हक़ का बहुत है कठिन रास्ता
रास्ते के लिए रहनुमा चाहिए
ख़ुल्द के रास्तों को है जो जानता
उस अली का हमें आसरा चाहिए
क़ब्र क्या है अंधेरा सा घर है जहां
मारेफ़त के सिवा कोई सपना नहीं
वो बहुत ही अंधेरी जगह है वहां
कोई यावर नहीं कोई अपना नहीं
तुमसे मिलने लहद में अली आएंगे
बोलो तनहाई में और क्या चाहिए
सात नस्लों को पहले है ये झांकती
इनमें मोमिन तो कोई नहीं आ रहा
हो यक़ीं इनमें कोई भी मोमिन नही
उस मुनाफ़िक का ये काटती है गला
ये जो तलवार है थामने के लिए
आज भी दस्ते शेरे ख़ुदा चाहिए
क़ब्र में मेरे मुझको उतारा गया
तो नकीरैन मुझसे ये कहने लगे
महफ़िले मर्तज़ा को सजाओ यहां
इक़ कसीदा हमें भी सुनाओ ज़रा
सब दिवाने अली के हैं बैठे यहां
बोलो ज़किर तुम्हें और क्या चाहिए