कुल्ले इमान के बाप का तज़किरा
ऐन ए इस्लाम है ऐन ए इमान है
कुछ मुसलमान कहते हैं काफिर हैं वो
काफिरों ने कहा वो मुसलमान हैं
अक्से इसमत का पहला मुसव्विर है वो
सुल्बी इसमत का नूरी मुसाफ़िर है वो
मुस्तफ़ा की मुवद्दत का ज़ाकिर है वो
फिर भी दुनिया ये कहती है काफ़िर है वो
जिसके इसमे गिरामी पे क़ुरआन में
आज भी सूरते आले इमरान है
इसका पहलू बदलना इबादत बनी
इसके दामन को छूकर तहारत चली
मेरा मौला है सारे जहां का वली
एक अल्ला अली एक बन्दा अली
जिसके बेटे को लोगों ने अल्ला कहा
पूछो ख़ालिक़ से वो कैसा इंसान है
कुछ रसूलों से भी जिसका रुतबा बड़ा
ख़ुद मोहम्मद ने भी जिसका कलमा पढ़ा
जिसके पहलू में इसलाम पलता रहा
और उंगली पकड़ कर मोहम्मद चला
आयतों की ज़मीं जिसकी आगोश है
ज़ात ए ततहीर ही जिसका दमान है
ख़ुद हैं मौला अली सर झुकाए हुए
साथ ज़हरा के सरवर हैं आए हुए
और इसमत की चादर बिछाए हुए
सारे बैठे हैं महफ़िल सजाए हुए
हुक्म दें क्या करें हम परेशान हैं
आज तो पाक इमरान मेहमान हैं