बिगड़ा था कर्बला में मुकद्दर हुसैन का
कुन्बा फिरा है दश्त में दर दर हुसैन का
हाथों पे शह के मर गया दिलबर हुसैन का
सुनते हैं दोपहर में लुटा घर हुसैन का
प्यासा शहीद हो गया लश्कर हुसैन का
कोई भी जुल्म शाह पर बाक़ी रहा नहीं
वह कौन सा सितम था जो शह पर हुआ नहीं
ज़ालिम ने वक्ते ज़िबह भी पानी दिया नहीं
हद है कफ़न हुसैन को रन में मिला नहीं
जलती ज़मीं पे था तने अतहर हुसैन का
रंजो महन में शाह को यूं मुब्तिला किया
शिम्रे लई ने दिल में न ख़ौफे खुदा किया
जो सर नबी की गोद में अकसर रहा किया
वह फर्क अपनी तेग़ से रन में जुदा किया
नोके सिना पे था सरे अनवर हुसैन का
तक़दीर में ग़रीबों की रंजो महन रहे
ज़ैनब के बाज़ुओं में निशाने रसन रहे
अकबर रहे न असग़रे गुन्चा दहन रहे
अब्बास और न क़ासिमे गुल पैरहन रहे
करबोबला में लुट गया सब घर हुसैन का
कड़ियल जवां की लाश उठाई हुसैन ने
शशमाहे की लहद भी बनाई हुसैन ने
शक्ले पिसर ज़मीं में छिपाई हुसैन ने
भाई की लाश दिल से लगाई हुसैन ने
कोई रहा न मूनिसो यावर हुसैन का
बेकस को बेवतन को कोई जुल्म से बचाये
इतना नहीं जो दश्त से मय्यत कोई उठाये
सैय्यद को तश्नालब को कफन तो कोई पिन्हाये
इक बेवतन की करबोबला में लहद बनाये
तीरों पे है रुका हुआ पैकर हुसैन का
पासो अदब किया न किसी ने इमाम का
है याद दिल को सब्र शहे तश्नाकाम का
चलता गुलूए खुश्क पे रुक रुक के हाम का
लुटना हरम का आग से जलना ख़्याम का
ताराज करबला में हुआ घर हुसैन का
मारा गया है करबोबला में अली का लाल
काटा गया गला शहे दीं का पसे ज़वाल
प्यासे के ख़ून से हुई सारी ज़मीन लाल
सैय्यद की लाश हो गयी घोड़ों से पाएमाल
टुकड़े हुआ है दश्त में पैकर हुसैन का
क्योंकर 'मुसव्वर' आह हो सूरत क़रार की
जुल्फें खुली हुई हैं हर इक सोगवार की
रुख़सत है आख़री शहे दुलदुल सवार की
उठती है मय्यत आज गरीबुल दयार की
शियों उठाओं लाशाए बेसर हुसैन का