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Wednesday, September 8, 2021

bano kahan talash kare apne lal ko

 

बानो कहां तलाश करे अपने लाल को

जंगल में मार डाला है ज़हरा की आल को


ज़ैनब के साथ रोती हैं सब मिलके बीबियां

जब देखती थी रोज़ वो वक़्ते ज़व्वाल को


शब्बीर दिल थाम के ग़श खाके गिर पड़े

देखा जो ख़ूं में ग़र्क़ नबी के जमाल को


शब्बीर मेरे पास है सदक़े को बस यही

झूले से लाके दे दिया बानों ने लाल को


शब्बीर ला रहे हैं मैंदा से देखिये

अपने ज़यीफ़ कांधों पे अट्ठारह  साल को


बाज़ारे शाम में वो असीरों का क़ाफ़िला

आबिद न भूल पाए कभी इस ख़्याल को


ऐसा तो ज़ुल्मो जौर किसी पर हुआ नहीं

बरबाद जिस तरह किया ज़हरा की आल को


लैला दुआएं करती रहीं बादे करबला

या रब जुदा न‌ करना किसी मां से लाल को


शब्बीर अपने रौज़े पे बुलवाएंगे ज़रूर

तौक़ीर तू निकाल दे दिल से मलाल को