बानो कहां तलाश करे अपने लाल को
जंगल में मार डाला है ज़हरा की आल को
ज़ैनब के साथ रोती हैं सब मिलके बीबियां
जब देखती थी रोज़ वो वक़्ते ज़व्वाल को
शब्बीर दिल थाम के ग़श खाके गिर पड़े
देखा जो ख़ूं में ग़र्क़ नबी के जमाल को
शब्बीर मेरे पास है सदक़े को बस यही
झूले से लाके दे दिया बानों ने लाल को
शब्बीर ला रहे हैं मैंदा से देखिये
अपने ज़यीफ़ कांधों पे अट्ठारह साल को
बाज़ारे शाम में वो असीरों का क़ाफ़िला
आबिद न भूल पाए कभी इस ख़्याल को
ऐसा तो ज़ुल्मो जौर किसी पर हुआ नहीं
बरबाद जिस तरह किया ज़हरा की आल को
लैला दुआएं करती रहीं बादे करबला
या रब जुदा न करना किसी मां से लाल को
शब्बीर अपने रौज़े पे बुलवाएंगे ज़रूर
तौक़ीर तू निकाल दे दिल से मलाल को