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Sunday, August 9, 2020

deen ki tablig me

दीं की तबलीग़ में जब दीन का रहबर बोले

गैर मुमकिन है वहां कोई भी बढ़ कर बोले


ख़ुम के मैदान में जिबरील ये आकर बोले

आज से मौला हैं हर एक के हैदर बोले


हाशिमी मुत्तालबी हम हैं ज़माने वालों

सर हथेली पे लिए रन में बहत्तर बोले


मर्तबा क्या है मोहम्मद का इसी से समझो

उनके हाथों पे पहुंच जाए तो कंकर बोले


तू मेरा दोस्त मेरा भाई मेरा मोहसिन है

हुर को सीने से लगाकर यही सरवर बोले


हम ग़ुलामाने अली रखते हैं क़दमो में जिनां

जंगे सिफ्फीन में ये मालिके अश्तर बोले


पार कर जाए भला किस में है जुर्रत इतनी

खैंच कर ख़त यही अब्बासे दिलावर बोले


नुसरते दीं के लिए मैं भी चलूंगा बाबा

ख़ुद को झूले से गिराकर यही असग़र बोले


कोई भी मौला अली जैसा नहीं दुनिया में

बज़्मे अग़ियार में ये मीसमो कम्बर बोले