दीं की तबलीग़ में जब दीन का रहबर बोले
गैर मुमकिन है वहां कोई भी बढ़ कर बोले
ख़ुम के मैदान में जिबरील ये आकर बोले
आज से मौला हैं हर एक के हैदर बोले
हाशिमी मुत्तालबी हम हैं ज़माने वालों
सर हथेली पे लिए रन में बहत्तर बोले
मर्तबा क्या है मोहम्मद का इसी से समझो
उनके हाथों पे पहुंच जाए तो कंकर बोले
तू मेरा दोस्त मेरा भाई मेरा मोहसिन है
हुर को सीने से लगाकर यही सरवर बोले
हम ग़ुलामाने अली रखते हैं क़दमो में जिनां
जंगे सिफ्फीन में ये मालिके अश्तर बोले
पार कर जाए भला किस में है जुर्रत इतनी
खैंच कर ख़त यही अब्बासे दिलावर बोले
नुसरते दीं के लिए मैं भी चलूंगा बाबा
ख़ुद को झूले से गिराकर यही असग़र बोले
कोई भी मौला अली जैसा नहीं दुनिया में
बज़्मे अग़ियार में ये मीसमो कम्बर बोले