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Wednesday, April 1, 2020

ham madhe ali me

हम मदहे अली में दार पे भी लफ्ज़ों को रवानी देते हैं
कटती है ज़बां कट जाए मगर पैग़ाम ज़बानी देते हैं

तो शाहिद हैं अदाएं मीसम की हम वो हैं अली के दीवाने
जिस पेड़ पे फांसी लगनी है उस पेड़ को पानी देते हैं

क़ातिल को पिलाया हैदर ने लश्कर को पिलाया सरवर ने 
ये ऐसे घराने वाले हैं दुश्मन को भी पानी देते हैं

पेशानिए हुर पर ये कह कर रूमाल को बांधा सरवर ने
जन्नत भी फिदा हो जाएगी हम ऐसी निशानी देते हैं

क़ुरबान हुए जब रन में हबीब पैग़ाम दिया गदुनिया को अजीब
हम अपनी ज़यीफी के बदले मज़हब को जवानी देते हैं

अब्बास की तुरबत ही के क़रीब पानी ने ठहर के बतलाया
मैं बहता हूँ जब अब्बास  मुझे जब इज़्ने रवानी देते हैं

अब्बास ने पानी दरिया को चुल्लू से पिलाकर बतलाया
मुट्ठी में है कौसर हम ख़ुद ही दरियाओं को पानी देते हैं

मौला ने कहा इस्लाम तुझे ताहश्र जवां रहने के लिए
असग़र का तबस्सुम देते है अकबर की जवानी देते हैं

इसलाम गवाही देता है जब जब भी ज़रूरत पड़ती है
हो ख़ून या दौलत सरवर के नाना और नानी देते है

हैदर ने दुआ है जब मांगी क़ुदरत ने कहा है मेरे अली
अब्बास की सूरत में तुझको हम तेरा ही सानी देते हैं

जब मैने दुआ उन से मांगी असग़र ने कहा न घबराओ
मिदहत का शरफ इस बचपन में हम तुमको भी 'हानी' देते हैं