हम मदहे अली में दार पे भी लफ्ज़ों को रवानी देते हैं
कटती है ज़बां कट जाए मगर पैग़ाम ज़बानी देते हैं
तो शाहिद हैं अदाएं मीसम की हम वो हैं अली के दीवाने
जिस पेड़ पे फांसी लगनी है उस पेड़ को पानी देते हैं
क़ातिल को पिलाया हैदर ने लश्कर को पिलाया सरवर ने
ये ऐसे घराने वाले हैं दुश्मन को भी पानी देते हैं
पेशानिए हुर पर ये कह कर रूमाल को बांधा सरवर ने
जन्नत भी फिदा हो जाएगी हम ऐसी निशानी देते हैं
क़ुरबान हुए जब रन में हबीब पैग़ाम दिया गदुनिया को अजीब
हम अपनी ज़यीफी के बदले मज़हब को जवानी देते हैं
अब्बास की तुरबत ही के क़रीब पानी ने ठहर के बतलाया
मैं बहता हूँ जब अब्बास मुझे जब इज़्ने रवानी देते हैं
अब्बास ने पानी दरिया को चुल्लू से पिलाकर बतलाया
मुट्ठी में है कौसर हम ख़ुद ही दरियाओं को पानी देते हैं
मौला ने कहा इस्लाम तुझे ताहश्र जवां रहने के लिए
असग़र का तबस्सुम देते है अकबर की जवानी देते हैं
इसलाम गवाही देता है जब जब भी ज़रूरत पड़ती है
हो ख़ून या दौलत सरवर के नाना और नानी देते है
हैदर ने दुआ है जब मांगी क़ुदरत ने कहा है मेरे अली
अब्बास की सूरत में तुझको हम तेरा ही सानी देते हैं
जब मैने दुआ उन से मांगी असग़र ने कहा न घबराओ
मिदहत का शरफ इस बचपन में हम तुमको भी 'हानी' देते हैं