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Wednesday, March 11, 2020

kata 2

1
शेरे मुर्तज़ा से है राब्ता सकीना का
रहम दिल सख़ी परवर है चचा सकीना का
मांगने से भी ज़्यादा देगे हज़रते अब्बास
शर्त है दोआ में हो वासता सकीना का

2
हक़ परस्ती आज भी बावस्तए शब्बीर है
करबला की जाज़बीयत कितनी आलमगीर है
 देखना है आज बातिल कैसे बच कर जाएगा
इक तरफ ज़ैनब खड़ी हैं इक तरफ शब्बीर है।
3
आंखो ने मेरी अश्कों का पाया है तबर्रुक
पलकों से फरिश्तो ने उठाया है तबर्रुक
इस वास्ते हर खून के क़तरे में वफा है
मजलिस का मेरी मां ने खिलाया है तबर्रुक
4
हैदर ने अपने शेर को लश्कर बना दिया
तूफा पिला पिला के समन्दर बना दिया
लोरी सुना सुना के अली की मुराद को
उम्मुल बनी ने हूबहू हैदर बना दिया
5
ज़ुल्म ने जब भी सितमगारों को ख़जर बांटे 
दार पक चढ़ के अली वालों ने तब सर बांटे
तो एक दो तीन नहीं बूज़रो सलमां की क़सम
हम ने हुर जैसे बहुत सों को मुक़द्दर बांटे
6
मोहब्बत की अना मौजें गज़ब ढ़ातीं तो क्या होता
जबीने वादए हक़ पर शिकन आती तो क्या होता
तो इस नुक़्ते पे अक्सर करबला भी सोंचती होगी
अगर शानों से पहले मश्क छिद जाती तो क्या होता
7
ज़ुल्म से जब हुई पैकार अबूतालिब की 
ज़ायक़ा बन गई तलवार अबूतालिब की
सिर्फ हैदर व पयंबर नही शामिल इसमें
सारी दुनिया है नमख़्ख़ार अबूतालिब की
8

है पड़ा क़दमों में पानी अब तलक बहता हुआ

तारी है दरिया पे हैबत आज तक अब्बास की

मार्का सिफ्फीन का है देख लो चढ़ता शबाब

चेहराए असग़र में देखो कमसिनी अब्बास की