1
इस आसरे पे दिले बेक़रार ज़िन्दा है
कोई तो अश्क़ों का उम्मीदवार जिन्दा है
ग़मे हुसैन को विदअत ज़रा संभल के कहो
अभी हुसैन का इक सोगवार ज़िन्दा है।
2
बातिल को मोजिज़ा ये दिखाया हुसैन ने
नोके सिना पे कुरआं सुनाया हुसैन ने
आंगन के सारे फूल हैं मकतल में रख दिए
मकतल को इस तरह से सजाया हुसैन ने
4
फिर आज हक़ के लिए जां फिदा करे कोई
वफ़ा भी झूम उठे यूं वफा करे कोई
नमाज़ 1400 सालों से इंतेज़ार मे है
हुसैन की तरह मुझको अदा करे कोई
5
हुसैन इब्ने अली की नियाज़ जारी है
अभी तो दीन की उम्रे दराज़ जारी है
सजदे में रख के सर न उठाया हुसैन ने
मेरे हुसैन की अब तक नमाज़ जारी है
6
जाहिल को कभी आलिमे क़ुरआं नहीं कहते
ग़ासिब को कभी दीन का सुलतां नहीं कहते
हाजी हो नमाज़ी हो या हो कोई और
हम दुश्मने ज़हरा को मुसलमां नहीं कहते
7
मैं ख़ाके करबला हूं शिफा बांटती हूं मैं
हर लाइलाज ग़म की दवा बांटती हूं मै
क्या मुझसे पूंछते हो के क्या बांटती हूं मै
शम्शो क़मर को रिज़के ज़िया बांटती हूं मैं
सोंचो ज़रा सी देर किधर जाए कायनात
मैं भी शिफ़ा न बांटू तो मर जाए कायनात