header 2

Tuesday, June 24, 2025

ये ज़हरा की दश्ते बला में सदा है

🤲 ANJUMAN-E-ZULFEQARE HAIDERI-MAHOLI

🕊️ ये ज़हरा की दश्ते बला में सदा है 🕊️

मेरा लाल जलती ज़मीं पे पड़ा है



बड़े नाज़ से जिसको मैंने था पाला

उसी के ही दम से था घर में उजाला

न पानी मिला क़त्ल प्यासा हुआ है

मेरा लाल जलती ज़मीं पे पड़ा है


न क़ासिम न अब्बास हैं और न अकबर

सभी सो रहें हैं कटाए हुए सर

उठे कैसे लाशा ये मां की सदा है

मेरा लाल जलती ज़मीं पे पड़ा है


मलक आके  जिसका झुलाते थे झूला

लिबास आए जन्नत से उरियां हो लाशा

जुदा तन से सर हाय ज़ालिम किया है

मेरा लाल जलती ज़मी पे पड़ा है


है बीमार बेटा जो गश में पड़ा है

है मजबूर कितनी बहन बेरिदा है

बुलाए किसे कौन अपना बचा है

मेरा लाल जलती ज़मीं पे पड़ा है


सकीना को मारे तमाचे लयीं ने

सरों से रिदाएं भी छीनी लयीं ने

ऐ शामे ग़रीबां ये कैसी जफा है

मेरा लाल जलती ज़मीं पे पड़ा है


सदा मेरी सुनकर कोई भी न आया

चला कुन्द ख़जर मेरा लाल तड़पा

है बाबा दुहाई गला कट रहा है

मेरा लाल जलती ज़मीं पे पड़ा है




असीरे मेहन जब हरम हो रहे थे

तो बाज़ारे कूफा ऐ बाबा सजे थे

लयीं लेके अहले हरम को चला है

मेरा लाल जलती ज़मीं पे पड़ा है