🤲 ANJUMAN-E-ZULFEQARE HAIDERI-MAHOLI
🕊️ अली की लाडली घबरा रही है 🕊️
शबे आशूर ढलती जा रही है
ज़मीं चुप है फलक़ सहमा हुआ है
दिले ज़ैनब परेशां हो रहा है
घटा ज़ुल्मो सितम की छा रही है
ख़िजां की ज़द में ज़हरा का चमन है
हुसैनी क़ाफेला तश्ना दहन है
लहू चश्मे फलक़ बरसा रही है
जिधर देखो नज़र आता है लशकर
अजब पुरहौल है सहरा का मंज़र
यजंदी फौज सिमटी आ रही है
कभी औनो मोहम्द को बुलाया
कभी सीने से अकबर को लगाया
कभी अब्बास को समझा रही है
शहे वाला को ख़ैमे में बुलाकर
बहन कहने लगी आंसू बहाकर
हमें सूरत अजल दिखला रही है
रसूले पाक की मसनद बिछाकर
अली अकबर को पहलू में बिठाकर
सुकूने क़ल्ब ज़ैनब पा रही है
करे क्या शाह की हमशीर आख़िर
बची है कौन सी तदबीर आख़िर
कली गुलशन की अब कुंभला रही है
ख़मोशी दश्त में छाई हुई है
सकीना आज घबराई हुई है
सदाए अल अतश बस आ रही है
कभी सोती है सीने पर सकीना
कभी रोती है घुट घुट कर सकीना
कभी बाबा से कुछ बतला रही है
कभी गहवराए असग़र झुलाकर
कभी गोदी में भाई को को उठाकर
सकीना ख़ुद को यूं बहला रही है
क़लम ख़ुरशीद का लिखता रहेगा
ग़मे शब्बीर का दरिया बहेगा
गौहर फिक्रे रज़ा बरसा रही है
क़लम ख़ुरशीद का लिखता रहेगा
ग़मे शब्बीर का दरिया बहेगा
गौहर फिक्रे रज़ा बरसा रही है