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Saturday, June 21, 2025

ये जनाज़ा है अली का शाहे ख़ैबर गीर का ये जनाज़ा है अली का

🤲 ANJUMAN-E-ZULFEQARE HAIDERI-MAHOLI

🕊️ ये जनाज़ा है अली का शाहे ख़ैबर गीर का ये जनाज़ा है अली का 🕊️

आज बाबा मर गया है शब्बरो शब्बीर का ये जनाज़ा है अली का




फ़ातेमा ज़हरा के मरक़द से सदा आने लगीये मसायब रह गया था क्या मेरी तक़दीर काये जनाज़ा है अली का

या रसूल अल्लाह ये जिबरील ने रोकर कहा

एक हल्क़ा और टूटा नूर की ज़ंजीर का

ये जनाज़ा है अली का


क्यों चलाई तेग़ हैदर पर बिने मुलजिम बता

क़त्ल कुरआं कर दिया काटा गला तफ़सीर का

ये जनाज़ा है अली का


ग़म अली की बेटियों के फिर से ताज़ा हो गए

ग़म अभी भूली कहां थीं मादरे दिलगीर का

ये जनाज़ा है अली का


नज़आ में जाने अली को क्या ख़्याल आता रहा

मुह कभी ज़ैनब का देखा और कभी शब्बीर का

ये जनाज़ा है अली का


बेटियों को देखते हैं और रोते हैं अली

हाय‌ वो ज़ालिम तसव्वुर शाम की तशहीर का

ये जनाज़ा है अली का


छोटे से अब्बास भी रोते है सर को पीट कर

बचपना अब्बास का और ज़ख़्म दिल पर तीर का

ये जनाज़ा है अली का




बाप की मय्यत से ज़ैनब का लिपटना बार बार

दिल हिला देता है रोना शाह की हमशीर का

ये जनाज़ा है अली का