🤲 ANJUMAN-E-ZULFEQARE HAIDERI-MAHOLI
🕊️ क्या भूल गए बहना को ,भइया अली अकबर 🕊️
सुग़रा ये बयां करती थी परदेसी बरादर ,भइया --
भइया तेरी फुरक़त मुझे जीने नहीं देती
मिलने की मगर आस में ज़िन्दा हूं अभी भी
दरवाज़े पे बैठी हूं इसी आस में दर पर भइया---
रहता है मेरे सर पे मेरी मौत का साया
कुछ रोज़ की मेहमान है मर जाएगी सुग़रा
दम सीने में अटका है निकल जाएगा बाहर भइया--
इक बार भी सुग़रा की तुम्हे याद न आई
तुम छोड़ गए इसकी शिकायत नहीं भाई
हां शिकवा है आएना मेरे भाई पलटकर भइया---
उजड़ा हुआ घर बार मुझे डसता है भइया
हुजरा तेरा वीरान है वीरान मदीना
घर देख के रह जाती हूं हर बार तड़प कर भइया---
सच बात है क़िसमत पे नहीं ज़ोर किसी का
तक़दीर से शिकवा है नहीं आप से शिकवा
तनहाई में उजड़ा है मरीज़ा का मुक़द्दर भइया---
अरमान था भइया का मेरे ब्याह रचेगा
मै सदक़े गई बन गए परदेस में दूल्हा
बस रह गए अरमान मेरे सीने के अन्दर भइया---
किस प्यार की ममता की शिकायत करूं भाई
अफ्सोस कि अम्मू को मेरी याद न आई
लाऊंगी न अब दर्द की रूदाद लबों पर भइया---
बस करती हू भइया तुम्हें उस रब के हवाले
उजड़ी हुई क़िसमत मेरी अल्लाह सम्भाले
अब आना तो आना मेरी तुरबत पे बरादर भइया---
अब रुकने लगी सांसे हसन रोक क़लम को
उर्फी न लिखा जाएगा बीमार के ग़म को
बस बहने लगा आंखो से अश्को का समन्दर भइया