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Saturday, June 21, 2025

क्या भूल गए बहना को ,भइया अली अकबर

🤲 ANJUMAN-E-ZULFEQARE HAIDERI-MAHOLI

🕊️ क्या भूल गए बहना को ,भइया अली अकबर 🕊️

सुग़रा ये बयां करती थी परदेसी बरादर ,भइया --




भइया तेरी फुरक़त मुझे जीने नहीं देती

मिलने की मगर आस में ज़िन्दा हूं अभी भी

दरवाज़े पे बैठी हूं इसी आस में दर पर भइया---


रहता है मेरे सर पे मेरी मौत का साया

कुछ रोज़ की मेहमान है मर जाएगी सुग़रा

दम सीने में अटका है निकल जाएगा बाहर भइया--


इक बार भी सुग़रा की तुम्हे याद न आई

तुम छोड़ गए इसकी शिकायत नहीं भाई

हां शिकवा है आएना मेरे भाई पलटकर भइया---


उजड़ा हुआ घर बार मुझे डसता है भइया

हुजरा तेरा वीरान है वीरान मदीना

घर देख के रह जाती हूं हर बार तड़प कर भइया---


सच बात है क़िसमत पे नहीं ज़ोर किसी का

तक़दीर से शिकवा है नहीं आप से शिकवा

तनहाई में उजड़ा है मरीज़ा का मुक़द्दर भइया---


अरमान था भइया का मेरे ब्याह रचेगा

मै सदक़े गई बन गए परदेस में दूल्हा

बस रह गए अरमान मेरे सीने के अन्दर भइया---


किस प्यार की ममता की शिकायत करूं भाई

अफ्सोस कि अम्मू को मेरी याद न आई

लाऊंगी न अब दर्द की रूदाद लबों पर भइया---


बस करती हू भइया तुम्हें उस रब के हवाले

उजड़ी हुई क़िसमत मेरी अल्लाह सम्भाले

अब आना तो आना मेरी तुरबत पे बरादर भइया---




अब रुकने लगी सांसे हसन रोक क़लम को

उर्फी न लिखा जाएगा बीमार के ग़म को

बस बहने लगा आंखो से अश्को का समन्दर भइया