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Wednesday, June 25, 2025

ऐ बादे सबा जाके‌ ये अम्मू को बताना प्यासी है सकीना

🤲 ANJUMAN-E-ZULFEQARE HAIDERI-MAHOLI

🕊️ ऐ बादे सबा जाके‌ ये अम्मू को बताना प्यासी है सकीना 🕊️

याद आए सकीना तो चचा लौट के आना प्यासी है सकीना




इस छोटे से सिन में जो सितम मैंने उठाए

अल्लाह किसी को ना यतीम ऐसा बनाए

खुद अपने लहू में कोई बच्ची ना नहाए

मैं तुम को बुलाती रही तुम भी तो ना आए

मै बन गई बाद अस्र लईनों का निशाना


प्यासी है सकीना


घर लौट के जब शाम को जाते हैं परिन्दे

क़िसमत में लिखे हैं मेरी ज़िन्दां के अंधेरे

कब तक मैं जियूंगी यूंही अश्क़ो के सहारे

लगता है मैं मर जाऊंगी अब दूर वतन से

होगा ना मयस्सर मुझे घर लौट के जाना


प्यासी है सकीना


जिस रोज़ से असग़र को मिला बाबा का सीना

उस रोज़ से अम्मू नहीं सो पाई सकीना

इस हाल में जाऊंगी मैं किस तरह मदीना

आ जाए मुझे मौत है किस काम का जीना

जागी हूं बहुत आ के चचा मुजको सुलाना


प्यारी है सकीना


एक जाम हुआ शामे ग़रीबा में मय्यसर

वो कूज़ा मै रख आयी थी असगर की लहद पर

था मुझसे भी छोटा मेरा भैय्या मेरा दिलबर

शर्मिंदा मैं हो जाती चचा प्यास बुझाकर

अब अपने ही हाथो से मेरी प्यास बुझाना


प्यासी है सकीना


पानी की तलब मुझको खिलाती रही ठोकर

कहता था लई दूंगा मैं फ़ौजों पिलाकर

जब शिम्रे लयीं कर चुका सेहराब वो लश्कर

दिखला के मुझे फेक दिया पानी ज़मी पर

तब समझी मै क्या होता है उम्मीद दिलाना


प्यासी है सकीना


एक रस्सी में हम सब के गले बांध के आदा

करते हुए तशहीर चले जानिबे कूफा

और उस पे मुसीबत ये थी क़द छोटा था मेरा

जब उठती थीं फुफिया तो गला खिचता था मेरा

गरदन का मेरी ज़ख़्म चचा देखने आना


प्यारी है सकीना




अनवर ये सदा परचमे अब्बास से आई

मैं भूल नहीं सकता सकीना मेरी बच्ची

काटे गए बाज़ू मेरे मजबूर था बीबी

मशकीज़ा अलम में है लगा देख ले अब भी

परचम का मेरी काम है दुनिया को बताना

प्यारी है सकीना