🤲 ANJUMAN-E-ZULFEQARE HAIDERI-MAHOLI
🕊️ लिपटी है जुलजनाह के पैरों से नीम जां 🕊️
घोड़े से कह रही थी ये बिन्ते शहे ज़मा
आगे कदम बढ़ता नहीं अस्पे बा वफ़ा
जब शाह को इशारा किया रहवार ने
देखा ज़मीं की जानिब शहे नामदार ने
घोड़े से कह रही थी रो रो के ये सकीना
हो जायगा अकेले दुशवार मेरा जीना
ढ़ाता है मुझ गंरीब पे क्या ज़ुल्म आसमां
ले जाना मेरे बाबा को ऐ अस्पे बावफा
सीना कहा मिलेगा पदर का यतीम को
होगा नसीब रन में ना सोना यतीम को
आएगी नींद कैसे सोऊगी मैं कहा पर
सोती थी मैं हमेशा सदरे शहे ज़मा पर
मकतल में अपने बाबा को पाउगी मैं कहां
आगोश में हुसैन ने लेकर किया सुख़न
ख़ैमे में जाओ बेटी ना रोको हुसैन को
अब छोड़ दो सकीना शहे माशराक़ैन को
जैनब के साथ रहना हर जुल्म दिल पे सहना
शिकवा ना तुम अतश का अपनी फुफी से करना
बिन्ते अली है दश्त में मजबूरो नातवां
दामन तेरा जलाएंगे रन में जफ़ा शआर
शिम्रे लयीं न देगा तुम्हे एक क़तरा आब
मक़तल की सर ज़मीं पर गिरा देगा सारा आब
कर्बोबला के बन में जब तू फुगां करेगी
उलियां मुकाम ज़ैनब तुझको तसल्ली देगी
रोएगी अपने बाप के उल्फत में नन्ही जां
करना तलाश तलाश ऐना अबी कहके बाप को
मैं मुन्तज़िर तुम्हारा रहूंगा नशेब में
हर वक़त याद तुमको करूंगा नशेब में
जब नींद आए तुमको मकतल की सिम्त आना
जाने रबाब तुमको सीना मिलेगा मेरा
बेगोर होगा लाशाए बेसर मेरा वहां
पहुंचोगी क़ैद होके जब दरबारे शाम में
तश्ते तिला में रख्खा हुआ होगा मेरा सर
इब्ने ज़ियाद तुमको रुलाएगा जानकर
कुछ दूर से पिदर को अपने बुलाना होगा
ख़ुद ही तुम्हारी गोदी में मुझको आना होगा
देना है तुमको बाप की उल्फ़त का इम्तेहां
रोता है अश्क़ ख़ून के ग़म में तेरे ज़फ़र
बिन्ते हुसैन इसको बुला लो मज़ार पर
कुछ रहम खा सकीना दिले सोगवार पर
ग़म में तेरा फिदाई है हिन्द में परेंशां
फ़ुरक़त में खूं के आंसू रोती है चश्मे गिरिया
मिल जाए आसताना तो पा जाए ये अमां