🤲 ANJUMAN-E-ZULFEQARE HAIDERI-MAHOLI
🕊️ बिखरे पड़े हैं लाशे औलादे मुर्तज़ा के 🕊️
ज़ैनब उजड़ गई है कर्बोबला में आके
ज़हरा ने जिसको पाला चक्की चला चला के
प्यासा उदूं ने मारा मेहमा उसे बुला के
ज़ैनब कहां हो आओ अब तो गले लगाओ
बेटे हैं आए रन से ख़ूं मे नहा नहा के
ज़ैनब के दो पिसर थे मारे गए हैं दोनों
ग़श खा गई है दुखिया लाशे गले लगा के
पामाल कर दिया है लश्कर ने जिस्मे क़ासिम
शब्बीर चुन रहे हैं टुकड़े अबा बिछा के
हाथो से दिल को थामे दौड़े हैं शाह रन को
शायद गिरें हैं अकबर बर्छी जिगर पे खा के
मज़लूमे करबला की बच्चो मदद को आओ
मकतल से ला रहे हैं लाशे जवां उठा के
मरने की आरज़ू में झूले से गिर पड़े हैं
असग़र को चैन आया गरदन पे तीर खा के
दम तोड़ते हैं अकबर ऐ नामावर ठहर जा
अब क्या मिलेगा तुझको सुग़रा का ख़त सुना के
सुनती हूं तीर खाकर तू रन में मुस्कुराया
कुरबान जाए असग़र मां तेरी इस अदा पे
क्या बदनसीब मादर रूठे हुए हो असग़र
करती है बैन मादर झूला झुला के
भूलेगी कैसे मादर असग़र का तीर खाना
चुपचाप रो रही है झूले से सर लगा के
अब्बास तुम कहां हो मज़लूम को संभालो
शब्बीर थक गए हैं लाशे उठा उठा के
जलती ज़मीं पे हाए शह बेकफन पड़े हैं
जिबरील कर दो साया अपने परों से आके
ज़ख़्मी हैं कान दोनो बेहाल है सकीना
दरिया से कौन लाए अब्बास को बुला के
ज़हरा की बेटियों की तशहीर हो रही है
ग़ैरत से चल रहे हैं सज्जाद सर झुका के