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Tuesday, June 24, 2025

कहती थी मादर ऐ मेरे अकबर होती है सुबह अज़ान दो

🤲 ANJUMAN-E-ZULFEQARE HAIDERI-MAHOLI

🕊️ कहती थी मादर ऐ मेरे अकबर होती है सुबह अज़ान दो 🕊️

होगा बपा कुछ देर में महशर होती है सुबह अज़ान दो




जानती हूं मैं मुझको ख़बर है

तेरे लबों पे मेरी नज़र है

कुछ ही पलों का और सफर है

मां भी तेरी मजबूर मगर है

लाल मेरे हमशकले पयंबर

होती है सुबह अज़ान दो


सर को झुकाए ख़ैमे के दर पर

बाबा खड़े हैं आप के अकबर

और इधर ख़ैमे के अन्दर

बैठी है ग़मग़ीं ज़ैनबे मुज़तर

कर लो तयम्मुम ऐ अली अकबर

होती है सुबह अज़ान दो


एक तरफ अब्बास दिलावर

करते हैं सैक़ल तेग़ के ऊपर

ग़श में पड़े हैं आबिदे मुज़तर

बैठी है ग़म में मादरे असग़र

टूट न जाय साथ का साग़र

होती है सुबह अज़ान दो


हाल बुरा है प्यास के मारे

फिर भी हंसी है लब पे तुम्हारे

आजा रे आजा राज दुलारे

दुखिया मां के आंखों के तारे

वक़्त बहुत कम है अली अकबर

होती है सुबह अज़ान दो


देख इधर मासूम सकीना

आंख में आंसू हाथ में कूज़ा

जिसके लबों पर प्यास का दरिया

आई है कहने तुमसे बेटा

जाने तमन्ना जाने ख़्वाहर

होती है सुबह अज़ान दो


शाम से पहले ख़ुश्क गले पर

तेरे चलेगा शिम्र का ख़ंजर

और तुम्हारी दुखिया मादर

बैन करेगी लाश के ऊपर

फिर न कहूंगी मैं तुम्हें अकबर

होती है सुबह अज़ान दो


कैसे लिखे गुलशन ये मंजर

आए अज़ां देने जो अकबर

निकला ज़बां से अल्लाहो अकबर

खोल दिए सैदानियों ने सर

फर्श पे कहकर गिर गई मादर

होती है सुबह अज़ान दो


कैसे लिखे गुलशन ये मंजर

आए अज़ां देने जो अकबर

निकला ज़बां से अल्लाहो अकबर

खोल दिए सैदानियों ने सर

फर्श पे कहकर गिर गई मादर

होती है सुबह अज़ान दो