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Wednesday, March 19, 2025

ऐ मोमिनों अली की शहादत

 

ऐ मोमिनों अली की शहादत के रोज़ हैं

मातम करो इमाम की रुख़सत के रोज़ हैं 


शब्बीर रो के कहते थे बाबा ना जाइए,  

तन्हा ना जी सकेंगे, ख़ुदारा ना जाइए।  

कैसे बयां हो, कितनी मुसीबत के रोज़ हैं।


तलवार सर पे मारी है ज़ालिम ने हाय हाय,  

ज़ैनब खबर ये सुनके कही ग़म से मर ना जाए।  

बच्चों पे फ़ातिमा के क़यामत के रोज़ हैं।   


घर में ख़ुदा के खूं है बहाया लयीन ने,  

छीना है सर से बाप का साया लयीन ने।  

कूफ़े के हर यतीम के ग़ुरबत के रोज़ हैं।  


कुलसूम बोली, भाई से बाबा को लाइए 

कैसे हैं मेरे बाबा ये मुझको बताइए 

सज्दे में सर है ज़ख़्मी, इबादत के रोज़ हैं।  


क्यों कर रक़म निशात से हो बेटियों के ग़म,  

रमज़ान में अली पे हुआ इस क़दर सितम।  

हाशिम पढ़े ये कैसे क़यामत के रोज़ हैं।