ऐ ख़ाक के ज़र्रों ऐ तेज़ हवाओं
लाशा किसी मज़लूम का बे-ग़ोरो कफ़न है
वारिस कोई मौजू़द नहीं हूका सा बन है
दफ़नाने का सामां करो ऐ ख़ाक के ज़र्रों
ऐ तेज़ हवाओं
ऐ ख़ाक के ज़र्रों ऐ तेज़ हवाओं
शब्बीर ने तर्ज़ीह जिसे दी थी कफ़न पर
आदा ने वो कुर्ता भी न रहने दिया तन पर
अब तुम कफ़न उसका बनो ऐ ख़ाक के ज़र्रों
ऐ तेज़ हवाओं
ऐ ख़ाक के ज़र्रों ऐ तेज़ हवाओं
बेदर्दों ने लाशे का अजब हाल किया है
मज़लूम का तन घोड़ों से पामाल किया है
आज़ा को बिखरने न दो ऐ ख़ाक के ज़र्रों
ऐ तेज़ हवाओं
ऐ ख़ाक के ज़र्रों ऐ तेज़ हवाओं
सर अपना कटाए हुए जो रन में पड़ा है
ये अहमदे मुख़्तार की गोदी का पला है
लिल्लाह अज़ीयत न दो ऐ ख़ाक के ज़र्रों
ऐ तेज़ हवाओं
ऐ ख़ाक के ज़र्रों ऐ तेज़ हवाओं
है दुख़्तरे मेहबूबे ख़ुदा का ये दुलारा
ये हैदरे कर्रार की आँखों का है तारा
लाश इसकी न बर्बाद हो ऐ ख़ाक के ज़र्रों
ऐ तेज़ हवाओं
ऐ ख़ाक के ज़र्रों ऐ तेज़ हवाओं
छिनती न अगर ज़ैनबे मज़लूम की चादर
ये लाश पड़ी रहती न इस तरह ज़मीन पर
दफ़नाने का सामां करो ऐ ख़ाक के ज़र्रों
ऐ तेज़ हवाओं
ऐ ख़ाक के ज़र्रों ऐ तेज़ हवाओं
ले जाते न आबिद को अगर करके गिरफ़्तार
बे-ग़ुस्लो कफ़न रहता न यूं सय्यादे अबरार
क़ैदी की नियाबत करो ऐ ख़ाक के ज़र्रों
ऐ तेज़ हवाओं
ऐ ख़ाक के ज़र्रों ऐ तेज़ हवाओं
मारा गया है जो भी शक़ी दफ़न हुआ
और सिब्ते पयंबर यूं ही बे-ग़ोर पड़ा है
मिट्टी शह बे-कस को दो ऐ ख़ाक के ज़र्रों
ऐ तेज़ हवाओं
ऐ ख़ाक के ज़र्रों ऐ तेज़ हवाओं