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Sunday, August 18, 2024

ऐ ख़ाक के ज़र्रों ऐ तेज़ हवाओं

 


ऐ ख़ाक के ज़र्रों ऐ तेज़ हवाओं


लाशा किसी मज़लूम का बे-ग़ोरो कफ़न है

वारिस कोई मौजू़द नहीं हूका सा बन है

दफ़नाने का सामां करो ऐ ख़ाक के ज़र्रों

ऐ तेज़ हवाओं


ऐ ख़ाक के ज़र्रों ऐ तेज़ हवाओं


शब्बीर ने तर्ज़ीह जिसे दी थी कफ़न पर

आदा ने वो कुर्ता भी न रहने दिया तन पर

अब तुम कफ़न उसका बनो ऐ ख़ाक के ज़र्रों

ऐ तेज़ हवाओं


ऐ ख़ाक के ज़र्रों ऐ तेज़ हवाओं


बेदर्दों ने लाशे का अजब हाल किया है

मज़लूम का तन घोड़ों से पामाल किया है

आज़ा को बिखरने न दो ऐ ख़ाक के ज़र्रों

ऐ तेज़ हवाओं


ऐ ख़ाक के ज़र्रों ऐ तेज़ हवाओं


सर अपना कटाए हुए जो रन में पड़ा है

ये अहमदे मुख़्तार की गोदी का पला है

लिल्लाह अज़ीयत न दो ऐ ख़ाक के ज़र्रों

ऐ तेज़ हवाओं


ऐ ख़ाक के ज़र्रों ऐ तेज़ हवाओं


है दुख़्तरे मेहबूबे ख़ुदा का ये दुलारा

ये हैदरे कर्रार की आँखों का है तारा

लाश इसकी न बर्बाद हो ऐ ख़ाक के ज़र्रों

ऐ तेज़ हवाओं


ऐ ख़ाक के ज़र्रों ऐ तेज़ हवाओं


छिनती न अगर ज़ैनबे मज़लूम की चादर

ये लाश पड़ी रहती न इस तरह ज़मीन पर

दफ़नाने का सामां करो ऐ ख़ाक के ज़र्रों

ऐ तेज़ हवाओं


ऐ ख़ाक के ज़र्रों ऐ तेज़ हवाओं


ले जाते न आबिद को अगर करके गिरफ़्तार

बे-ग़ुस्लो कफ़न रहता न यूं सय्यादे अबरार

क़ैदी की नियाबत करो ऐ ख़ाक के ज़र्रों

ऐ तेज़ हवाओं


ऐ ख़ाक के ज़र्रों ऐ तेज़ हवाओं


मारा गया है जो भी शक़ी दफ़न हुआ

और सिब्ते पयंबर यूं ही बे-ग़ोर पड़ा है

मिट्टी शह बे-कस को दो ऐ ख़ाक के ज़र्रों

ऐ तेज़ हवाओं


ऐ ख़ाक के ज़र्रों ऐ तेज़ हवाओं