header 2

Sunday, August 11, 2024

ज़हरा की बेटियों को


बेपर्दा शाम लाकर बाज़ार  में फिराया ज़हरा की बेटियों को 

ऐ कलमा गो बताओ तुम कैसे उम्मती हो यूं आले मुस्तफा पर तुमने सितम ये  ढाया 

बाज़ार  में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


बेपर्दा शाम लाकर बाज़ार  में फिराया जहरा की बेटियों को 


कूफ़े की औरतों ने अपनी छतों से हम पर 

सदके के ख़ुरमे फेंके यूं मुश्तहक़ समझ कर 

ग़म सारे हम ने सहके एक दूसरे से कहके 

सर को नहीं उठाया बाज़ार  में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


बे परदा शाम लाकर बाज़ार  में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


यूं हमको क़नीज़ो की तरह लाते हैं ज़ालिम 

बच्चों पे ना क़ैदी पे तरस खाते है ज़ालिम 

ऐ कलमा गो बताओ तुम कैसे उम्मती हो यूं आले मुस्तफा पर तुमने सितम ये ढाया बाज़ार में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


बेपर्दा शाम लाकर बाज़ार में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


अपनी छतो से फेंके पत्थर हमारे ऊपर 

अंगारे सर पे फेंके अम्मामा और जला सर 

मज़बूरो नतावां है ये कैसा इम्तेहां है 

कांटो पे है चलाया बाज़ार में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


बेपर्दा शाम लाकर बाज़ार में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


मज़ूर थे इस तरह बचा पाए न सर को 

बे गोरो कफ़न छोड़ के आये थे पदर को 

ऐ कलमा गो बताओ तुम कैसे उम्मती हो यूं आले मुस्तफा पर तुमने सितम ये  ढाया बाज़ार  में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


बेपर्दा शाम लाकर बाज़ार  में फिराया जहरा की बेटियों को 


एक बीबी घर से आकर पानी का जाम लेकर 

बच्ची से कह रही थी मेरे लिए दुआ कर 

बारबाद तेरे जैसे मेरे नहीं हो बच्चे 

मक़सद हो मेरा पूरा बाज़ार  में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


बेपर्दा शाम लाकर बाज़ार में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


कोई यतीम यतीमी में ये दुआ ना करे 

खुदा किसी को मसायब में मुबतेला ना करे 

ऐ कलमा गो बताओ तुम कैसे उम्मती हो यूं आले मुस्तफा पर तुमने सितम ये  ढाया बाज़ार  में फिरया ज़हरा की बेटियों को 


बेपर्दा शाम लाकर बाज़ार में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


पानी न पीना बेटी ज़ैनब ये रो के बोली 

क्या चाहती है बीबी पहले दुआ हो उसकी 

वो बोली ऐ यतीमा जाऊंगी मै मदीना 

किस्मत में हो खुदाया बाज़ार में फिरया ज़हरा की बेटियों को 


बेपर्दा शाम लाकर बाज़ार में फिराया ज़हरा की बेटियों को, 


अल्लाह ना दुश्मन को भी मंज़र ये दिखाए

सर पर ना यतीमी के हो परदेस में साए

ऐ कलमगो बताओ तुम कैसे उम्मती हो यूं आले मुस्तफ़ा पर तुमने सितम ये ढाया बाज़ार में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


बेपर्दा शाम लाकर बाज़ार में फिराया ज़हरा की बेटियां को 


ये पूछती थी जैनब क्यों जाएगी तू यसरब 

है कौन तेरी मलिका मुझको ज़रा बता अब 

कहने लगी ऐ क़ैदी बाज़ारे शहज़ादी 

और नाम लू मै उनका बाज़ार में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


बेपर्दा शाम लाकर बाज़ार में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


मत जाना तू यसरब को कहने लगी ये ज़ैनब 

और हाथो से सर को पीट के रोने लगी ज़ैनब 

ऐ कलमा गो बताओ तुम कैसे उम्मती हो यूं आले मुस्तफा पर तुमने सितम ये ढाया बाज़ार में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


बे परदा शाम लाकर बाज़ार में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


मक़तल में सर बुरीदा लाशे पड़े हुए थे 

और सामने हमारे नेज़ों पे सर चढ़े थे 

एक सर था उनमें ऐसा आगे नहीं जो बढ़ता 

उसने लहू बहाया बाज़ार में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


बेपर्दा शाम लाकर बाज़ार में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


ऐक लाशा बे सर है तराई पे किसी का 

बाज़ू नहीं है जिस्म पे छलनी है कलेजा 

ऐ कलमा गो बताओ तुम कैसे उम्मती हो यूं आले मुस्तफा पर तुमने सितम ये  ढ़ाया बाज़ार  में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


बेपर्दा शाम लाकर बाज़ार  में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


सैराब तुम सभी थे प्यासी थी आले अतहर 

रोते थे नन्हें बच्चे हांथो में कूज़े लेकर

तक़सीम सब को करके अपने शिकम को भरके पानी सभी बहाया बाज़ार  में फिराया जहरा की बेटियों को 


बेपर्दा शाम लाकर बाज़ार  में फिराया जहरा की बेटियों को 


लब खुश्क़ बच्चों की जबां ऐंठी हुई थी 

टूटी है मेरी हड्डियां आवाज सुनी थी 

ऐ कलमा गो बताओ तुम कैसे उम्मती हो यूं आले मुस्तफा पर तुमने सितम ये ढाया बाज़ार में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


बेपर्दा शाम लाकर बाज़ार में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


तुम कुर्सियों पे बैठे अहले हरम खड़े थे 

ग़ुरबत पे बेकसों की सब लोग हंस रहे थे

अजरो वफ़ा यहीं है कोई हया नहीं है 

क़ैदी इन्हे बनाया बाज़ार में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


बेपर्दा शाम लाकर बाज़ार में फिराया ज़हरा की बेटियों को 


ज़ैनब सरे दरबार यही सोच रही है 

अकबर मेरा मारा गया अब्बास नहीं है 

हाए बे पर्दा फिरूं क्या मेरी किस्मत में यही है 

ज़ंजीरो में फरज़ंदे हुसैन इब्ने अली है 

ऐ कलमा गो बताओ तुम कैसे उम्मती हो यूं आले मुस्तफा पर तुमने सितम ये  ढाया बाज़ार  में फिराया जहरा की बेटियों को 


बेपर्दा शाम लाकर बाज़ार  में फिराया जहरा की बेटियों को 


कैसे बयां हो अफ़सर‌ दरबार का वो मंज़र 

पामल हो चुके थे नाको से बच्चे गिरकर 

आहो बुका थी हर सूं चेहरों पे डाले गेसू

गम यूं हर एक उठाया बाज़ार  में फिराया ज़हरा की बेटियों को बेपर्दा शाम लाकर बाज़ार  में फिराया ज़हरा की बेटियों को


पालाल हुए नाक़ो के पैरों तले बच्चे

यूं मौत की आगोश में सोने लगे बच्चे

ऐ कलमा गो बताओ तुम कैसे उम्मती हो यूं आले मुस्तफा पर तुमने सितम ये  ढाया बाज़ार  में फिराया जहरा की बेटियों को