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Saturday, August 12, 2023

लरज़ते हांथो पर सिब्ते

 


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लरज़ते हाथों पे सिब्ते पयम्बर

अली अकबर का लाशा ला रहे हैं

ज़यफ़ी में कलेजे से लगा कर

अली अकबर का लाशा ला रहे हैं


कहा शह ने अली अकबर से बेटा

बहुत दुश्वार है लैला का जीना

सुनेगी जिस घड़ी सुल्ताने महशर

अली अकबर का लाशा ला रहे हैं


शहे दीं का नहीं है कोई यावर

बनी हाशिम के बच्चों ले लो बढ़कर

सुए ख़ैमा शहे दीं लड़खड़ाकर

अली अकबर का लाशा ला रहे हैं


बहुत अरमान था लैला को अकबर

बंधे सेहरा अली अकबर के सर पर

तो अब लगता है शह दूल्हा बनाकर

अली अकबर का लाशा ला रहे हैं


कहा कुल्सुम से ज़ैनब से बहना

ख्याले हज़रते लैला भी रखना

कहीं वो मर ना जाए इतना सुनकर

अली अकबर का लाशा ला रहे हैं


सुए दरिया कहा ज़ैनब ने रोकर

मेरे अब्बास ले लो आगे बढ़कर

हुसैन इब्ने अली तन्हा उठाकर

अली अकबर का लाशा ला रहे हैं


पुकारी ज़ैनबो कुल्सूम लैला

अली अकबर का अब रस्ता न तकना

वो देखो सामने मेरे बरादर

अली अकबर का लाशा ला रहे हैं


जो ताबूते अली अकबर सजाया

लबे दावर पे था उस दम ये नौहा

के जैसे आज भी सिब्ते पयंबर

अली अकबर का लाशा ला रहे हैं