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Thursday, August 10, 2023

किये हैं शिम्र ने दो क़त्ल

 



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किये हैं शिम्र ने दो क़त्ल एक ख़ंजर से

लहू हुसैन का पोछा बहन की चादर से


किसी ने बालों से पकड़ा कोई उठा के चला

सरे हुसैन को मारा किसी ने पत्थर से


ग़रीबे ज़हरा वहीं रोते रोते मर जाता

बहन उठा के न लाती जो लाशे अकबर से


उसे उठाया है बाबा की लाश से ऐसे

कि फ़िर सकीना नहीं सोयी शिम्र के डर से


लबे हुसैन पे हंस हंस के मारता है छड़ी,

यज़ीद खेल रहा था हुसैन के सर से


बुलाया शाम के ज़िंदां में जब सकीना ने

हुसैन प्यासे पलट आए हौज़े कौसर से


फ़क़त गला ही नहीं शह का कटा रन में

कटे हैं हाथ भी ज़हरा के कुन्द खंजर से


बहन का पर्दा तकल्लुम उसे बनाना था

सुना रहा था वो क़ुरआं सिना के मिम्बर से