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दश्ते ग़ुरबत में किए फातेमा ज़हरा ने ये बैन
मेरे लाचार हुसैन मेरे लाचार हुसैन
होके मैं तुझसे जुदा पाऊंगी किस तरह से चैन
मेरे लाचार हुसैन मेरे लाचार हुसैन
सारे दिन तूने उठाए हैं फ़क़त लाशे ही
लाश क़ासिम की उठाई है कभी अकबर की
एक पल को ना सुकूं मिल ना सका तुझको हुसैन
तेरे सब चाहने वाले हैं पड़े मक़तल में
बे कफ़न तेरा जनाज़ा है पड़ा करबल में
तेरे मरने से बपा हो गया है शोरो शैन
मैं मदीने से तेरे साथ चली हूं बेटा
कर्बला तक मैं तेरे साथ रही हूं बेटा
तेरी मां ग़म में तेरे रहती है हर दम बेचैन
ऐ मेरे लाल कफ़न तुझको नहीं दे पाई
मैं तेरे जिस्म का बोसा भी नहीं ले पाई
प्यार तुझको किया करते थे रसूले सक़लैन
छोड़ कर अपने जिगर परों को जाऊं कैसे
टुकड़े मक़तल में पड़े हाय उठाऊं कैसे
आओ इमदाद को जन्नत से शहे बदरो हुनैन
चलता है सूखे गले पे जो सितम का ख़ंजर
कोई मोनिस नहीं है कोई नहीं है यावर
ख़ून में तर है पड़ा आज मेरा नूरे ऐन
तौक़ ओ ज़ंजीर जो बीमार को पहनाता है
बालियां बच्ची की कानों से लयीं छीनता है
सर से चादर जो छिनी बोली बहन हाय हुसैन
कैसे मुख़्तार करेगा तू बयां वो मंज़र
प्यासा इरफ़ान ज़बह होता है ज़हरा का पिसर
जख्मी है दीने पयंबर की है जो ज़ेबो ज़ैन