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निदा हातिफ़ की आई सरहदे कूफ़ा के मक़तल से
हबीब आओ हुसैन इब्ने अली आवाज़ देते हैं
किया था हमने जो नाना से वादा वो निभाना है
हमें अब गुलशने दीन ए पयंबर को बचाना है
ज़मीने कर्बला ही आख़िरी अपना ठिकाना है
नहीं ग़म गुलशने ज़हरा अगर पमाल हो जाये
हमारा चाहे सीना बर्छियों की ढाल हो जाए
मगर ऐ भाई दीने मुस्तफा खुशहाल हो जाये
मेरे भाई तुम्हारी दोस्ती पर नाज़ है मुझको
तुम्हारे ख़ून की दरिया दिली पर नाज़ है मुझको
तुम्हारे नफ़्स की पाकीज़गी पर नाज़ है मुझको
खिंचे हैं तीर आकार देख लो भाई कमानों में
सितमगारों की शमशीरें नहीं थमती मयानों में
दग़ा देखी है ये आख़िर यहां के मेज़बानो में
उदूं में शादियाने बजते हैं खुशियों का मौसम है
मगर आले पयंबर में सदाए सोज़ो मातम है
ज़बां से जितनी बतलाऊं मुसीबत भाई वो कम है
खुदा वाले बहत्तर हैं उधर लाखों का लश्कर है
गज़ब ये है बहत्तर में भी इक शशमाहा असग़र है
कोई है सानिए हैदर कोई शबीहे पयंबर है
मुसीबत की घड़ी है कर्बला में हम अकेले हैं
निशाने पंजतन ख़ल्क़े ख़ुदा में हम अकेले हैं
घिरे हैं भाई लाखों अश्किया में हम अकेले हैं
मेरे भाई कहो क्या देर है कूफ़े से हिजरत में
हमारे साथ रहना है तुम्हें जब बागे जन्नत में
खड़े है अकबरो अब्बास बाज़ारे शहादत में