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Monday, August 15, 2022

सुग़रा को रुलाता है


सुग़रा को रुलता है ये चांद मुहर्रम का

जब सामने आता है ये चांद मुहर्रम का


हम सूरते ज़हरा से भाई के बिछड़ने की

ख़ातूने क़यामत के घर बार उजड़ने की

रूदाद सुनाता है, ये चांद मुहर्रम का


कटा है गला लोगों सह रोज़ के प्यासे का

पामाल हुआ लाशा अहमद के नवसे का

हर इक को बताता है, ये चांद मुहर्रम का


तस्वीर दिखता है अहमद की जवानी की

हर शख़्स को दुनिया में करबल की कहानी की

तफ़सीर बताता है, ये चाँद मुहर्रम का


करबल की ज़ियारत को जो आँख तरसती थी

शब्बीर तेरे ग़म में जो आंख बरसती थी

उस आंख को भाता है, ये चांद मुहर्रम का


इमरान को शब्बर को खातून ए क़यामत को

हैदर की क़सम मज़हर सरकारे रिसलात को

तुरबत में रूलाता है, ये चांद मुहर्रम का