अज़मे हुसैनी देखे ज़माना
राहे ख़ुदा में घर को लुटाना
एक तरफ है दर्द की दुनिया
एक तरफ बेदर्द ज़माना
हाय गुलू ए असग़रे नादां
तीरे सितम का हुआ निशाना
सिब्ते नबी से सीख ले दुनिया
राहे ख़ुदा मे सर को कटाना
रस्मे वफ़ा अब्बास से सीखो
मश्क़ न छूटी कट गया शाना
सब्रे शहेदीं अल्ला हो अकबर
आज भी हैरत में है ज़माना
कैंदे सितम और आले पयंबर
हाय ये दुनिया उफ़ ये ज़माना
अज़मते शाहे कर्बोबला को
अहले सितम ने हाय न जाना
कैंद से छुटकर अहले बतन से
कहती हैं ज़ैनब ग़म का फ़साना
ये भी है इक एजाज़े शहादत
ताज़ा है अब तक ग़म का फ़साना