header 2

Tuesday, June 14, 2022

ज़यीफ़ बाप उठाए जवान का लाशा

 


ज़यीफ़ बाप उठाए जवान का लाशा

अजीब वक़्त पड़ा है हुसैन पर रन में


सिना जो सीनाए अकबर में हाय टूट गई

न जाने कैसे शहेदीं ने वो सिना खैंची

अनी के साथ कलेजा भी आह निकल आया

अजीब वक़्त पड़ा है हुसैन पर रन में



कलेजा आ गया बाहर लहू उबलने लगा

तड़प तड़प के जवां एड़ियां रगड़ने लगा

हुसैन मलते रहे हाथ मर गया बेटा

अजीब वक़्त पड़ा है हुसैन पर रन में


पुकारता हूं मैं कब से किधर गए अब्बास

मदद का वक़्त जो आया तो मर गए अब्बास

उठाए उठता नहीं है जवान का लाशा

अजीब वक़्त पड़ा है हुसैन पर रन में


ख़ुदा के वास्ते बच्चों तुम्ही‌ अब आ जाओ

मेरी ज़यीफ़ी तनहाई पर तरस खाओ

उठा रहा हूं मैं कड़ियल जवान का लाशा

अजीब वक़्त पड़ा है हुसैन पर रन में


मैं किस कलेजे से ख़ैमे में लाश ले जाऊं

मैं कैसे मादरे अकबर को शक्ल दिखलाऊं

वो किस कलेजे से देखेगी ज़ख़्म बेटे का

अजीब वक़्त पड़ा है हुसैन पर रन में


कोई तो काश ये कह देता उम्मे लैला से

ख़ुदा के वास्ते हट जाएं बाबा ख़ैमा से

हुसैन लाते है कड़ियल जवान का लाशा

अजीब वक़्त पड़ा है हुसैन पर रन में


कलेजा थाम के उस वक़्त ज़ैनब मुज़तर

कहा भतीजे के लाशे से ऐ अली अकबर

इसी लिए तुझे अट्ठारह साल पाला था

अजीब वक़्त पड़ा है हुसैन पर रन में


ख़ुदा किसी को न दुनिया में दिन ये दिखलाए

ज़यीफ बाप हो ज़िन्दा पि‌सर को मौत‌ आए

मगर ये रोज़ भी ज़हरा के लाल पर गुज़रा

अजीब वक़्त पड़ा है हुसैन पर रन में


न अब हैं औनो मोहम्मद न क़ासिमो अकबर

खड़ा है‌ रन में अकेला ये फ़ातेमा का पिसर

कोई भी इसकी सदा पर‌ सदा नहीं देता

अजीब वक़्त पड़ा है हुसैन पर रन में