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Wednesday, June 15, 2022

या हुसैन‌ 3 या मज़लूम

  

या हुसैन या हुसैन या हुसैन या मज़लूम


ऐ तीन दिन के प्यासे क्या तेरा मोजिज़ा है

तूने लहू दिया तो इस्लाम जी उठा है

राहे ख़ुदा में तूने सब कुछ लुटा दिया है

महसूस करने वाला हर दिल तड़प रहा है


असग़र ने ख़ून उगला गर्दन पे तीर खाकर

बर्छी लगी जो दिल पर तड़पे ज़मीं पे अकबर

बाज़ू कटा के सोया दरिया पे शेरे हैदर

तेरह बरस का क़ासिम पामाल हो गया है


ओझल हर एक सहारा आंखों से हो गया है

अब्बास भी सिधारे अकबर भी खो गया है

हद है कि बेज़ुबां भी तुरबत में सो गया है

घर तेरा लुट गया है आबाद करबला है


ग़ुरबत में दुश्मनों ने यूं दुश्मनी निकाली

मुरझा गई है तेरे गुलशन की डाली डाली

दोनों जहां में पहुंची तेरे लहू की लाली

सूखे गले से तेरे इतना लहू बहा है


दोनों चले थे घर से इस्लाम को बचाने

भाई बहन पे गुज़री क्या क्या है कौन जाने

दोनों को मिलके लूटा इस अर्ज़े करबला ने

भाई भी बे कफन है ख़्वाहारा भी बेरिदा है


जन्नत की शाहज़ादी है मादरे गिरामी

शेरे ख़ुदा पदर हैं हैदर हैं नाम नामी

भाई हसन हैं जिनकी शाहों ने की ग़ुलामी

कितने लक़ब का मालिक मज़लूमे करबला है


हरा है जंग तुझसे बातिल का हर सिपाही

तूने मिटाई हुर की तक़दीर की सियाही

दी मस्जिदों ने बढ़कर इस बात की गवाही

मज़लूमियत से तेरी इस्लाम की बक़ा है


लोहे की बेड़ियों का बीमार बोझ उठाए

तेरे ही रास्ते पर अपने क़दम जमाए

अल्लाह की रज़ा में ख़ामोश सर झुकाए

फूलों पे चलने वाला कांटों पे चल रहा है


इक दो पहर में तुझ पर क्या क्या सितम हुए हैं

शर्मिन्दा तेरे आगे दुनिया के ग़म हुए हैं

अब तक तेरे मसायब तहरीर कम हुए हैं

जो दिल पे तेरे गुज़री वो कौन लिख सका है


मसरूफ़े ग़म है कब से ये कायनात सारी

कैसे सुरूर कम हो इस दिल की बेक़रारी

हर ज़ख़्म से अभी तक उसके लहू है जारी

सदियां गुज़र गयीं हैं मरहम नहीं मिला है