शहीद हो गये असग़र उजड़ गया झूला
अजल ने कर दिया खाली भरा हुआ झूला
कोई तो काश ये कहता न ज़ालिमों लूटो
कि इक दुखे हुए दिल का है आसरा झूला
हुमक के आ गया बाबा की गोद में बच्चा
तड़पती मां के लिये छोड़ कर चला झूला
लहद में आये थे झूले को छोड़ कर असग़र
तो ज़लज़लों ने लहद को बना दिया झूला
तमाम रात था नज़रों में क़त्ल का मंज़र
शबे दहम किसी बेकस से कम न था झूला
हर इक शहीद का लाशा था सामने उसके
लिये था गोद में तस्वीर करबला झूला
थे मां के हाथ रसन में बंधे पसे गर्दन
झुला रही थी मगर मां की मामता झूला
दिले रबाब तड़पता था अब झुलाने को
था इज़तेराब मुसलसल रुका हुआ झूला
कहानी रह गयी असग़र की ख़ूं रुलाने को
न रह गये अली असग़र न रह गया झूला
लहू के अश्क़ टपकते हैं 'फैज़' आंखों से
नज़र जो आता है असग़र का खूं भरा झूला