ज़हरा की दुआ पाओ ऐ शह के अज़ादारों
है वक़्त संभल जाओ ऐ शह के अज़ादारों
हर बस्ती रहे मौला अज़ादारों की आबाद
बस ग़म हो तेरा और हो हर ग़म से ये आज़ाद
परचम के तेरे साए में करते हैं फ़रियाद
हर ग़म की दवा पाओ ऐ शह के अज़ादारों
दुनिया के दिखावे को मातम जो करे अकसर
उन लोगों से कह देंगी ज़हरा ये सरे महशर
उन लोगों से ही लो मातम का सिला जाकर
ऐसा ना हो पछताओ ऐ शह के अज़ादारों
जो लोग अक़ीदत से मातम यहां करते हैं
चेहरे पे वफ़ाओं के ख़ुद नक़्श उभरते हैं
रोती हैं उन्हे ज़हरा जब लोग वो मरते है
ये बात समझ जाओ ऐ शह के अज़ादारों
ये परदाए ग़ैबत से देते हैं सदा मौला
मौजूद है ग़ैबत मे शब्बीर का इक बेटा
अब रुक नहीं सकता है मातम शहे वाला का
हर दौर पे छा जाओ ऐ शह के अज़ादारों
फ़तवे जो लगाते हैं सुन ले क्या हक़ीक़त है
मातम की नमाज़ों की दोनों की फ़ज़ीलत है
और हश्र के मैंदां में दोनो की ज़रूरत है
ये बात न झुठलाओ ऐ शह के अज़ादारों
शब्बीर के ग़म में न शोहरत की ज़रूरत है
न मंहगे तबर्रुक की कुछ ख़ास फज़ीलत है
ज़हरा तो ये देखेंगी बस कैसी अक़ीदत है
जो बस में हो बटवाओ ऐ शह के अज़ादारों
ऐ शह के अज़ादारों वो याद करो मंज़र
शब्बीर का काटा है सजदे में लयीं ने सर
ये सोंच के ही सर को सजदे में रखो जाकर
ये हक़ है चले आओ ऐ शह के अज़ादारों
जब दिल में अज़ीम अपने शब्बीर की उल्फत है
क्यों मीसमे तम्मार फिर आज ये नफ़रत है
ये ही तो हक़ीक़त में तौहीने मोहब्बत है
ये बात समझ जाओ ऐ शह के अज़ादारों