दी थी अम्मा ने जो पोशाक वो ला दो ज़ैनब
अपने हाथों से कफन मुझको पिन्हा दो ज़ैनब
आज मकतल में फ़क़त बात तुम्हारी होगी
अभी अम्मा से मुलाक़ात हमारी होगी
कोई पैग़ाम अगर है तो सुना दो ज़ैनब
अपने हाथों से कफन मुझको पिन्हा दो ज़ैनब
हाथ पाबन्दे रसन बहना तुम्हारे होंगे
मुझको रह रह के ख़्याल आता है लाशे से मेरे
तीर किस तरह निकालोगी बता दो ज़ैनब
अपने हाथों से कफन मुझको पिन्हा दो ज़ैनब
मेरे लाशे की रहेगी तुम्हे पहचान बहन
चाक कर दो मेरे कुर्ते का गिरेबान बहन
कोई लूटे न इसे ऐसा बना दो ज़ैनब
अपने हाथों से कफन मुझको पिन्हा दो ज़ैनब
सामने अपने सकीना से उतरवा लो गौहर
अभी कुछ देर में लुट जाएगा मज़लूम का घर
ये अमानत किसी गोशे में छिपा दो ज़ैनब
अपने हाथों से कफन मुझको पिन्हा दो ज़ैनब
बाहर आने को न ख़ैमे से मैं कहता तुमको
होते अब्बास तो तकलीफ न देता तुमको
बनके अब्बास मुझे ज़ीं पे बिठा दो ज़ैनब
अपने हाथों से कफन मुझको पिन्हा दो ज़ैनब
क़ैद ख़ाने की संभालो ये अमानत बीबी
गोद में लो इसे मज़लूम हो रुक़सत बीबी
मेरा दामन मेरी बच्ची से छुड़ा लो ज़ैनब
अपने हाथों से कफन मुझको पिन्हा दो ज़ैनब
जब से अकबर गए बीनाई भी आंखो की गई
ला के दे दो अली असग़र की निशानी कोई
कुर्ता बेशीर का आंखो से लगा दो ज़ैनब
अपने हाथों से कफन मुझको पिन्हा दो ज़ैनब
घर से शब्बीर जानाज़े की तरह से निकले
सभी रोते थे तकल्लुम दरे ख़ैमा पे खड़े
शह ने जिस दम कहा मरने की रज़ा दो ज़ैनब
अपने हाथों से कफन मुझको पिन्हा दो ज़ैनब