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Wednesday, May 4, 2022

अब्बास के परचम को

 

 

अब्बास के परचम को हवा चूम रही है

लगता है कि ज़हरा की रिदा चूम रही है


आ देख सकीना तेरे अब्बास का लाशा

दरिया के किनारे पे क़ज़ा चूम रही है

लगता है कि ज़हरा की रिदा चूम रही है


अब्बास के परचम को हवा चूम रही है


यूं भीगती जाती है फ़िज़ा छू के अलम को

जैसे के ये ज़ैनब की रिदा चूम रही है

लगता है कि ज़हरा की रिदा चूम रही है


अब्बास के परचम को हवा चूम रही है


सर अपना पटकता है किनारों पे ये पानी

या अर्श को मातम की सदा चूम रही है

लगता है कि ज़हरा की रिदा चूम रही है


अब्बास के परचम को हवा चूम रही है


बहता हुआ पानी है कि अब्बास के आंसू

मश्कीज़े को उम्मत की जफ़ा चूम रही है

लगता है कि ज़हरा की रिदा चूम रही है


अब्बास के परचम को हवा चूम रही है


सर चूम के गाज़ी का कहा इब्ने अली ने

अब्बास क़दम तेरे वफ़ा चूम रही है

लगता है कि ज़हरा की रिदा चूम रही है


अब्बास के परचम को हवा चूम रही है